कहती सखियन और किशोरी, मैंने बांधी प्रीत की डोरी, कान्हा के नाम से, कान्हा के नाम से।
बंसी बजाता मन को लुभाता, नींदें छीने चैन चुराता, व्याकुल हो गई ब्रज की गोरी, मैंने बांधी प्रीत की डोरी, कान्हा के नाम से, कान्हा के नाम से।
छलता छलिया बांके बिहारी, करता क्या क्या लीला न्यारी, बन गया दिल की है कमजोरी, मैंने बांधी प्रीत की डोरी, कान्हा के नाम से, कान्हा के नाम से।
रंग में अपने वो रंग डाला, सुध बुध खो गई ब्रज की बाला, पल में कर लिया मन की चोरी, मैंने बांधी प्रीत की डोरी, कान्हा के नाम से, कान्हा के नाम से।
राधा और कृष्ण का प्रेम शुद्ध और दिव्य है। उनके प्रेम में केवल समर्पण और भक्ति है। राधा जी ने प्रेम को संसारिक बंधनों से ऊपर रखा और कृष्ण के साथ आत्मा का संबंध बनाया। उनका प्रेम किसी स्वार्थ या अपेक्षा पर आधारित नहीं है बल्कि परम श्रद्धा और अनुराग का प्रतीक है। कृष्ण भी राधा के प्रेम को सबसे ऊंचा मानते हैं। राधा कृष्ण की प्रीति आज भी भक्ति और प्रेम का सर्वोच्च आदर्श मानी जाती है। जय राधाकृष्ण।
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