संतो री महिमा कहाँ लग करू रे बड़ाई
संतो री महिमा कहाँ लग करू रे बड़ाई
शरणे आये री विनती,
प्रभु रखियो मेरी लाज,
संतां सोरो राखजो,
ज्यूँ हरि राख्यो प्रह्लाद।
आज भी तेरी आस है,
तो कल भी तेरी आस,
आस तुम्हारी लग रही,
तो छटी बारहो मास।।
संतों री महिमा,
कहाँ लग करूं रे बड़ाई,
गुरु रे चरण में मुक्ति मेवा,
हंस अमर हो जाई।
संत सायब रो एक ही रूप है,
प्रगट देह धराई,
जिण घर संत पावणा आवे,
वारी सफल कमाई।
संतों री महिमा,
कहाँ लग करूं रे बड़ाई।।
हरख प्रेम से सेवा करना,
तन मन शीश चढ़ाई,
लाखों जीव संतां रे शरणे,
पापीयों ही मुक्ति पाई।
संतों री महिमा,
कहाँ लग करूं रे बड़ाई।।
संतों से बेमुख हो चाले,
ज्यारी धीरक कमाई,
पापी नुगरा चोर सायब रा,
अंत नारकी में जाई रे।
संतों री महिमा,
कहाँ लग करूं रे बड़ाई।।
सतगुरु शब्द अमीरस पायो,
मगन भयो मन माई,
जन्म मरण री धूपी कल्पना,
पार लाग्यो ना आई।
संतों री महिमा,
कहाँ लग करूं रे बड़ाई।।
नानक नाथ मिल्या गुरु पूरा,
सत की सेन लखाई,
कहे लादूनाथ संतों री मेहमा,
सत में बूंद समाई।
संतों री महिमा,
कहाँ लग करूं रे बड़ाई।।
संतों री महिमा,
कहाँ लग करूं रे बड़ाई,
गुरु रे चरण में मुक्ति मेवा,
हंस अमर हो जाई।
संत सायब रो एक ही रूप है,
प्रगट देह धराई,
जिण घर संत पावणा आवे,
वारी सफल कमाई।
संतों री महिमा,
कहाँ लग करूं रे बड़ाई।।
प्रभु रखियो मेरी लाज,
संतां सोरो राखजो,
ज्यूँ हरि राख्यो प्रह्लाद।
आज भी तेरी आस है,
तो कल भी तेरी आस,
आस तुम्हारी लग रही,
तो छटी बारहो मास।।
संतों री महिमा,
कहाँ लग करूं रे बड़ाई,
गुरु रे चरण में मुक्ति मेवा,
हंस अमर हो जाई।
संत सायब रो एक ही रूप है,
प्रगट देह धराई,
जिण घर संत पावणा आवे,
वारी सफल कमाई।
संतों री महिमा,
कहाँ लग करूं रे बड़ाई।।
हरख प्रेम से सेवा करना,
तन मन शीश चढ़ाई,
लाखों जीव संतां रे शरणे,
पापीयों ही मुक्ति पाई।
संतों री महिमा,
कहाँ लग करूं रे बड़ाई।।
संतों से बेमुख हो चाले,
ज्यारी धीरक कमाई,
पापी नुगरा चोर सायब रा,
अंत नारकी में जाई रे।
संतों री महिमा,
कहाँ लग करूं रे बड़ाई।।
सतगुरु शब्द अमीरस पायो,
मगन भयो मन माई,
जन्म मरण री धूपी कल्पना,
पार लाग्यो ना आई।
संतों री महिमा,
कहाँ लग करूं रे बड़ाई।।
नानक नाथ मिल्या गुरु पूरा,
सत की सेन लखाई,
कहे लादूनाथ संतों री मेहमा,
सत में बूंद समाई।
संतों री महिमा,
कहाँ लग करूं रे बड़ाई।।
संतों री महिमा,
कहाँ लग करूं रे बड़ाई,
गुरु रे चरण में मुक्ति मेवा,
हंस अमर हो जाई।
संत सायब रो एक ही रूप है,
प्रगट देह धराई,
जिण घर संत पावणा आवे,
वारी सफल कमाई।
संतों री महिमा,
कहाँ लग करूं रे बड़ाई।।
संतो री महिमा कहाँ लग करू रे बड़ाई
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Author - Saroj Jangir
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