मीराबाई का हृदय हरि के मिलन की तड़प से भरा है, पर राहें कठिन और रपटीली। चारों ओर बाधाएँ, मन डगमगाता है, पग-पग पर सोचकर कदम रखे, फिर भी ठोकर लगे। प्रिय का महल ऊँचा, चढ़ना दुष्कर, दूर का पंथ और मन की सुरत झकोले खाए। हर कदम पर पहरा, हर पग पर मार, जैसे विधना ने गाँव को दूर बसाकर बिछा दिया। पर सतगुरु की कृपा से मार्ग मिला, जो युगों की बिछड़ी आत्मा को हरि के घर ले आया। यह मीरा की भक्ति है, जहाँ प्रेम और समर्पण हर बाधा को पार कर, गिरधर नागर के चरणों में साधक को लीन कर देता है।
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