घड़ी घड़ी मैं सोचूं तुझको भजन

घड़ी घड़ी मैं सोचूं तुझको भजन

(मुखड़ा)
घड़ी घड़ी मैं सोचूं तुझको, घड़ी घड़ी मैं सोचूं।
घड़ी घड़ी मैं सोचूं तुझको, घड़ी घड़ी मैं सोचूं।
तू है मेरा प्रियतम कान्हा, हर घड़ी तुझे सोचूं।
तू है मेरा प्रियतम कान्हा, हर घड़ी तुझे सोचूं।
घड़ी घड़ी मैं सोचूं तुझको, घड़ी घड़ी मैं सोचूं।।

(अंतरा)
बंद आंखों में तू ही तू है, खोलूं तो एक तू ही।
बंद आंखों में तू ही तू है, खोलूं तो एक तू ही।
हे मनमोहन, मेरी चाहत, मेरी दुनिया तू ही।
हे मनमोहन, मेरी चाहत, मेरी दुनिया तू ही।
सांसों की लय पे मैं तेरी धुन मुरली की सोचूं।
घड़ी घड़ी मैं सोचूं तुझको, घड़ी घड़ी मैं सोचूं।।

पहले देखूं तुझको, फिर मैं उगता सूरज देखूं।
पहले देखूं तुझको, फिर मैं उगता सूरज देखूं।
चंदा की चांदनिया में भी, तेरी ही सूरत देखूं।
चंदा की चांदनिया में भी, तेरी ही सूरत देखूं।
निंदिया में, सपनों में कान्हा, बस तुझको ही सोचूं।
घड़ी घड़ी मैं सोचूं तुझको, घड़ी घड़ी मैं सोचूं।।

घर को बुहारूं, अंगना संवारूं, साथ मेरे तू रहता।
घर को बुहारूं, अंगना संवारूं, साथ मेरे तू रहता।
करूं रसोई, तब भी कान्हा, डेरा डाले रहता।
करूं रसोई, तब भी कान्हा, डेरा डाले रहता।
तन मन ऐसा मोहा तूने, घड़ी घड़ी तुझे सोचूं।
घड़ी घड़ी मैं सोचूं तुझको, घड़ी घड़ी मैं सोचूं।।

भीड़ पड़ी जब भी मुझपे, तूने बिगड़ी मेरी संवारी।
भीड़ पड़ी जब भी मुझपे, तूने बिगड़ी मेरी संवारी।
फिक्र की अब कोई बात नहीं, तूने ली है जिम्मेदारी।
फिक्र की अब कोई बात नहीं, तूने ली है जिम्मेदारी।
तू भी सोचता मुझको कान्हा, जितना मैं तुझे सोचूं।
घड़ी घड़ी मैं सोचूं तुझको, घड़ी घड़ी मैं सोचूं।।

(पुनरावृति)
घड़ी घड़ी मैं सोचूं कान्हा, घड़ी घड़ी मैं सोचूं।
घड़ी घड़ी मैं सोचूं।
घड़ी घड़ी मैं सोचूं।।


Ghadi Ghadi Main Sochu Bhajan-घड़ी घड़ी मैं सोचूं तुझको, घड़ी घड़ी मैं सोचूं...(Ghadi ghadi main sochun tujhko, ghadi ghadi main)

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गायिका एवं रचना  रंजना गुंजन
संगीत सकल देव साहनी
 
कान्हा का प्रेम मन में ऐसी मुरली बजाता है, जो हर पल उन्हें स्मरण कराता है। वह मनमोहन हृदय में बसा है, चाहे आँखें बंद हों या खुली, केवल उनकी सूरत ही दिखती है। सूरज की पहली किरण हो या चाँद की चाँदनी, हर जगह उनकी छवि बसती है। घर के कामों में, रसोई की थाली सजाते वक्त भी उनका साथ साये-सा रहता है। यह प्रेम इतना गहरा है कि साँसों की हर लय उनकी धुन गुनगुनाती है। जब मुश्किलें घेर लें, तब भी कान्हा बिगड़ी को सँवार लेता है, और यह विश्वास देता है कि वह भी उतना ही हमें सोचता है, जितना हम उसे। यह भक्ति का रस है, जो जीवन के हर क्षण को कान्हा के रंग में डुबो देता है, और मन को सदा उनके चिंतन में लीन रखता है।
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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