झीनी झीनी बीनी चदरिया भजन लिरिक्स Jhini Jhini Bini Chadariya Bhajan Lyrics कबीर भजन लिरिक्स
झीनी झीनी बीनी चदरिया॥
काहे कै ताना काहे कै भरनी
कौन तार से बीनी चदरिया॥
इडा पिङ्गला ताना भरनी
सुखमन तार से बीनी चदरिया॥
आठ कँवल दल चरखा डोलै
पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया॥
साँ को सियत मास दस लागे
ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया॥
सो चादर सुर नर मुनि ओढी
ओढि कै मैली कीनी चदरिया॥
दास कबीर जतन करि ओढी
ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया॥
Chadariya Jhini Re Jhini | Anup Jalota Live in Concert | Red Ribbon Music
झीनी झीनी बीनी चदरिया व्याख्या : आत्मा की चादर है ये शरीर। कैसे बनी है ये चदरिया, इसको बनाने में कौन कौन से औजार काम में आये ? कैसा धागा था कैसा धागा था, इस चादर में प्राण फूंकने वाली इंगला और पिंगला नाड़ी हैं और इनके बीच में सुषुम्ना नाड़ी है।
आठ कमलों का एक चरखा चल रहा है और इसमें पांच तत्वों के पुनियों से तीन गुणों के तार खींचे जा रहे हैं। इसे बुनने में दस महीने लगते हैं। इस चादर को सुर नर मुनि के ओढ़ी लेकिन इसे दागदार कर दिया। कबीर दास जी ने इस चादर को बड़े जतन से ओढ़ा है और जैसी ये पवित्र थी वैसी ही वापस धर दी।
कबीर का कार्य जुलाहे का था और उन्होंने जीवन के सत्य को बहुत ही सहजता से जुलाहे के काम में आने वाले औजारों के उदाहरण देकर समझा दिया जिसे बड़े से बड़े ज्ञानी, पंडित और उपनिषद के जानकार भी नहीं समझा सके। कबीर ने जीवन में रहकर जो ज्ञान दिया वो सहज है।