राधा नाम जाप महिमा
‘राधा’ नाम जाप से मिलता है मोक्ष। श्री राधा जी श्री कृष्ण जी का अभिन्न शक्ति हैं। श्री राधा जी के नाम सुमिरन की शक्ति इतनी है की उसे श्री हरी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। जन्म जन्मान्तरों के पाप कट जाते हैं श्री राधा का नाम। श्री कृष्ण जी स्वंय राधा नाम की महिमा बताते हुए कहते हैं -
कहत स्याम निज मुख सदा, हौं चिन्मय परतत्त्व।
पूर्न ग्यानमय, पै न लखि पायौ प्रिया-महत्त्व।।
रहे सदा बरबस लग्यौ राधा मैं मन मोर।
रहौं प्रेम-विह्वल सदा लखि राधा चितचोर।।
श्री कृष्ण जी कहते हैं की मैं स्वंय चिन्मय परम तत्व हूँ, लेकिन श्री राधा जी के महत्त्व और महिमा का पता नहीं लगा सका हूँ। मेरा मन सदा राधा में लगा रहता है।
"रा" शब्द का अर्थ है–जिसमे सम्पूर्ण विश्व समाया हुआ है, वे महाविष्णु तथा उनके अन्दर निवास करने वाले विश्व के प्राणी और सम्पूर्ण विश्व; एवं ‘धा’ का अर्थ माता से लिया जाता है। श्री कृष्ण की भक्ति जब तक अधूरी है जब तक श्री राधे को याद नहीं किया जाय।
स्वंय शिव भी राधा जी की महिमा का वर्णन करते हुए श्री नारद से कहते हैं की श्री राधा ब्रह्मस्वरूपा, निर्लिप्तता और प्रकृति से अतीत हैं। श्री राधा का समय विशेष के अनुसार आदुर्भाव और तिरोभाव होता है। श्री राधा नित्य और सत्यरूपा हैं।
त्वं मे प्राणाधिका राधे प्रेयसी च वरानने।
यथा त्वं च तथाहं च भेदो हि नावयोर्ध्रुवम्।।
श्री कृष्ण जी कहते है की राधा, तुम और मैं एक हैं, तुम और मैं एक हैं, कोई भेद नहीं है।
जगतजननि हैं श्री राधा, इनकी शक्ति अपार है और श्री राधा के नाम से श्री कृष्ण प्रसन्न होते हैं। श्री राधा सम्प्रदाय को श्रीवल्लभ सम्प्रदाय रखा गया है। ब्रज के कण कण में श्री राधा नाम रमा है। राधाष्टमी के पावन पर्व पर श्री राधे रानी के नाम जाप से हर आशीर्वाद प्राप्त होता है और मोक्ष का द्वार खुलता है।
ब्रह्मवैवर्तपुराण में ब्रह्माजी कहते हैं की श्री राधा जी सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के कण कण में व्याप्त है। श्री कृष्ण जी समस्त ब्रह्माण्ड के अंश है उसी प्रकार से शक्तिरूप से श्री राधा जी कण कण में व्याप्त हैं। श्री राधा रानी के चरणों में स्थान पाने के लिए श्री ब्रह्मा जी ने साठ हजार सालों तक तपस्या की थी।
‘राधा’ नाम जाप से मिलता है मोक्ष। श्री राधा जी श्री कृष्ण जी का अभिन्न शक्ति हैं। श्री राधा जी के नाम सुमिरन की शक्ति इतनी है की उसे श्री हरी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। जन्म जन्मान्तरों के पाप कट जाते हैं श्री राधा का नाम। श्री कृष्ण जी स्वंय राधा नाम की महिमा बताते हुए कहते हैं -
कहत स्याम निज मुख सदा, हौं चिन्मय परतत्त्व।
पूर्न ग्यानमय, पै न लखि पायौ प्रिया-महत्त्व।।
रहे सदा बरबस लग्यौ राधा मैं मन मोर।
रहौं प्रेम-विह्वल सदा लखि राधा चितचोर।।
श्री कृष्ण जी कहते हैं की मैं स्वंय चिन्मय परम तत्व हूँ, लेकिन श्री राधा जी के महत्त्व और महिमा का पता नहीं लगा सका हूँ। मेरा मन सदा राधा में लगा रहता है।
"रा" शब्द का अर्थ है–जिसमे सम्पूर्ण विश्व समाया हुआ है, वे महाविष्णु तथा उनके अन्दर निवास करने वाले विश्व के प्राणी और सम्पूर्ण विश्व; एवं ‘धा’ का अर्थ माता से लिया जाता है। श्री कृष्ण की भक्ति जब तक अधूरी है जब तक श्री राधे को याद नहीं किया जाय।
स्वंय शिव भी राधा जी की महिमा का वर्णन करते हुए श्री नारद से कहते हैं की श्री राधा ब्रह्मस्वरूपा, निर्लिप्तता और प्रकृति से अतीत हैं। श्री राधा का समय विशेष के अनुसार आदुर्भाव और तिरोभाव होता है। श्री राधा नित्य और सत्यरूपा हैं।
त्वं मे प्राणाधिका राधे प्रेयसी च वरानने।
यथा त्वं च तथाहं च भेदो हि नावयोर्ध्रुवम्।।
श्री कृष्ण जी कहते है की राधा, तुम और मैं एक हैं, तुम और मैं एक हैं, कोई भेद नहीं है।
जगतजननि हैं श्री राधा, इनकी शक्ति अपार है और श्री राधा के नाम से श्री कृष्ण प्रसन्न होते हैं। श्री राधा सम्प्रदाय को श्रीवल्लभ सम्प्रदाय रखा गया है। ब्रज के कण कण में श्री राधा नाम रमा है। राधाष्टमी के पावन पर्व पर श्री राधे रानी के नाम जाप से हर आशीर्वाद प्राप्त होता है और मोक्ष का द्वार खुलता है।
ब्रह्मवैवर्तपुराण में ब्रह्माजी कहते हैं की श्री राधा जी सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के कण कण में व्याप्त है। श्री कृष्ण जी समस्त ब्रह्माण्ड के अंश है उसी प्रकार से शक्तिरूप से श्री राधा जी कण कण में व्याप्त हैं। श्री राधा रानी के चरणों में स्थान पाने के लिए श्री ब्रह्मा जी ने साठ हजार सालों तक तपस्या की थी।
मृदुल भाषिणी राधा ! राधा !!
सौंदर्य राषिणी राधा ! राधा !!
परम् पुनीता राधा ! राधा !!
नित्य नवनीता राधा ! राधा !!
रास विलासिनी राधा ! राधा !!
दिव्य सुवासिनी राधा ! राधा !!
नवल किशोरी राधा ! राधा !!
अति ही भोरी राधा ! राधा !!
कंचनवर्णी राधा ! राधा !!
नित्य सुखकरणी राधा ! राधा !!
सुभग भामिनी राधा ! राधा !!
जगत स्वामिनी राधा ! राधा !!
कृष्ण आनन्दिनी राधा ! राधा !!
आनंद कन्दिनी राधा ! राधा !!
प्रेम मूर्ति राधा ! राधा !!
रस आपूर्ति राधा ! राधा !!
नवल ब्रजेश्वरी राधा ! राधा !!
नित्य रासेश्वरी राधा ! राधा !!
कोमल अंगिनी राधा ! राधा !!
कृष्ण संगिनी राधा ! राधा !!
कृपा वर्षिणी राधा ! राधा !!
परम् हर्षिणी राधा ! राधा !!
सिंधु स्वरूपा राधा ! राधा !!
परम् अनूपा राधा ! राधा !!
परम् हितकारी राधा ! राधा !!
कृष्ण सुखकारी राधा ! राधा !!
निकुंज स्वामिनी राधा ! राधा !!
नवल भामिनी राधा ! राधा !!
रास रासेश्वरी राधा ! राधा !!
स्वयं परमेश्वरी राधा ! राधा !!
सकल गुणीता राधा ! राधा !!
रसिकिनी पुनीता राधा ! राधा !!
सौंदर्य राषिणी राधा ! राधा !!
परम् पुनीता राधा ! राधा !!
नित्य नवनीता राधा ! राधा !!
रास विलासिनी राधा ! राधा !!
दिव्य सुवासिनी राधा ! राधा !!
नवल किशोरी राधा ! राधा !!
अति ही भोरी राधा ! राधा !!
कंचनवर्णी राधा ! राधा !!
नित्य सुखकरणी राधा ! राधा !!
सुभग भामिनी राधा ! राधा !!
जगत स्वामिनी राधा ! राधा !!
कृष्ण आनन्दिनी राधा ! राधा !!
आनंद कन्दिनी राधा ! राधा !!
प्रेम मूर्ति राधा ! राधा !!
रस आपूर्ति राधा ! राधा !!
नवल ब्रजेश्वरी राधा ! राधा !!
नित्य रासेश्वरी राधा ! राधा !!
कोमल अंगिनी राधा ! राधा !!
कृष्ण संगिनी राधा ! राधा !!
कृपा वर्षिणी राधा ! राधा !!
परम् हर्षिणी राधा ! राधा !!
सिंधु स्वरूपा राधा ! राधा !!
परम् अनूपा राधा ! राधा !!
परम् हितकारी राधा ! राधा !!
कृष्ण सुखकारी राधा ! राधा !!
निकुंज स्वामिनी राधा ! राधा !!
नवल भामिनी राधा ! राधा !!
रास रासेश्वरी राधा ! राधा !!
स्वयं परमेश्वरी राधा ! राधा !!
सकल गुणीता राधा ! राधा !!
रसिकिनी पुनीता राधा ! राधा !!
Author - Saroj Jangir
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