श्री बृहस्पतिवार की आरती Brahaspativar Aarti Hindi आरती संग्रह | आरती लिरिक्स हिंदी
प्राचीन वैदिक ज्योतिष के अनुसार, बृहस्पति ग्रह को गुरु, देवगुरु या बृहस्पति के रूप में याद किया जाता है। साथ ही नाम के लिए सबसे शुभ, उदार, सहायक ग्रहों में से एक माना जाता है, बृहस्पति ग्रह लाभकारी है। ग्रह गुरु या बृहस्पति ज्ञान, पवित्र शास्त्र, दर्शन और परोपकार के लिए भी है। यह भी ज्ञात है कि बृहस्पति का स्वभाव जलमय है। ग्रह बृहस्पति को सौभाग्य, धन,
भक्ति, भाग्य, प्रसिद्धि, नैतिकता, आध्यात्मिकता, मजिस्ट्रेट, मंत्री, वकील, बच्चों के साथ-साथ सरकार या धर्म के नेताओं का सूचक माना जाता है। बृहस्पति की प्रतिकूलताएँ, जो बृहस्पति या गुरु हैं, समस्याओं, त्वचा की समस्याओं, दोष की अशुद्धता के कारण भी हो सकती हैं बृहस्पति एक हिंदू देवता हैं जिन्हें ज्ञान का देवता और सभी का मुख्य पुजारी माना जाता है। उन्हें "देव शिक्षक" और बृहस्पति ग्रह का देवता भी माना जाता है। योग में लक्ष्यों में से एक आत्म-ज्ञान और पूर्णता प्राप्त करना है। इस कारण से, बृहस्पति की शिक्षाओं के बाद, बहुत से लोग अपनी साधना के भीतर बृहस्पति का ध्यान करने को चुन सकते हैं।
भक्ति, भाग्य, प्रसिद्धि, नैतिकता, आध्यात्मिकता, मजिस्ट्रेट, मंत्री, वकील, बच्चों के साथ-साथ सरकार या धर्म के नेताओं का सूचक माना जाता है। बृहस्पति की प्रतिकूलताएँ, जो बृहस्पति या गुरु हैं, समस्याओं, त्वचा की समस्याओं, दोष की अशुद्धता के कारण भी हो सकती हैं बृहस्पति एक हिंदू देवता हैं जिन्हें ज्ञान का देवता और सभी का मुख्य पुजारी माना जाता है। उन्हें "देव शिक्षक" और बृहस्पति ग्रह का देवता भी माना जाता है। योग में लक्ष्यों में से एक आत्म-ज्ञान और पूर्णता प्राप्त करना है। इस कारण से, बृहस्पति की शिक्षाओं के बाद, बहुत से लोग अपनी साधना के भीतर बृहस्पति का ध्यान करने को चुन सकते हैं।
जय जय राम आरती तुम्हारी,
राम दयालु भक्ति हितकारी|
जिन हित प्रगटे हरि व्रतधारी,
जन प्रहलाद प्रतिज्ञा पाली|
द्रुपदसुता को चीर बढ़ायो,
गज के काज पयादे धायो|
दस सिर छेदि बीस भुज तोरे,
तैंतीस कोटि देव बन्दि छोरे|
छत्र लिए कर लक्ष्मण भ्राता,
आरती करत कौशल्या माता|
शुक शारद नारद मुनि ध्यावै,
भरत शत्रुहन चंवर दुरावै|
राम के चरण गहे महाबीरा,
धुरुव प्रहलाद बालिसुत वीरा|
लंका जीति अवध हरि आये,
सब सन्तन मिली मंगल गाये|
सीता सहित सिंहासन बैठे,
रामानन्द स्वामी आरती गाये|
बृहस्पति देव की आरती | Brihaspati Dev Aarti | Guruvar ki Aarti
राम दयालु भक्ति हितकारी|
जिन हित प्रगटे हरि व्रतधारी,
जन प्रहलाद प्रतिज्ञा पाली|
द्रुपदसुता को चीर बढ़ायो,
गज के काज पयादे धायो|
दस सिर छेदि बीस भुज तोरे,
तैंतीस कोटि देव बन्दि छोरे|
छत्र लिए कर लक्ष्मण भ्राता,
आरती करत कौशल्या माता|
शुक शारद नारद मुनि ध्यावै,
भरत शत्रुहन चंवर दुरावै|
राम के चरण गहे महाबीरा,
धुरुव प्रहलाद बालिसुत वीरा|
लंका जीति अवध हरि आये,
सब सन्तन मिली मंगल गाये|
सीता सहित सिंहासन बैठे,
रामानन्द स्वामी आरती गाये|
बृहस्पति देव की आरती | Brihaspati Dev Aarti | Guruvar ki Aarti
आरती का महत्त्व : पूजा पाठ और भक्ति भाव में आरती का विशिष्ठ महत्त्व है। स्कन्द पुराण में आरती का महत्त्व वर्णित है। आरती में अग्नि का स्थान महत्त्व रखता है। अग्नि समस्त नकारात्मक शक्तियों का अंत
करती है। अराध्य के समक्ष विशेष वस्तुओं को रखा जाता है। अग्नि का दीपक घी या तेल का हो सकता है जो पूजा के विधान पर निर्भर करता है। वातावरण को सुद्ध करने के लिए सुगन्धित प्रदार्थों का भी उपयोग किया जाता है। कर्पूर का प्रयोग भी जातक के दोष समाप्त होते हैं।
करती है। अराध्य के समक्ष विशेष वस्तुओं को रखा जाता है। अग्नि का दीपक घी या तेल का हो सकता है जो पूजा के विधान पर निर्भर करता है। वातावरण को सुद्ध करने के लिए सुगन्धित प्रदार्थों का भी उपयोग किया जाता है। कर्पूर का प्रयोग भी जातक के दोष समाप्त होते हैं।
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