रुत झोलिया भरन दी आयी माता भजन

रुत झोलिया भरन दी आयी माता भजन

 
रुत झोलिया भरन दी आयी माता भजन

(मुखड़ा)
रुत झोलियाँ भरन दी आयी,
के मैया ने भंडार खोलिया हुण सब दा,
ओहदे दर ते थोड़ ना कोई,
के मंगण दी लोड कोई ना,
होई ऐ दयाल मेरी माँ,
करदे सबनू निहाल मेरी माँ।।


(अंतरा)
तेरा भवन जग तो निराला,
निराली तेरी शान, अंबिके,
सुन अंबिये,
करो दूर हनेरे मन दे,
के जग दीए ज्योतावालिये,
होई ऐ दयाल मेरी माँ,
करदे सबनू निहाल मेरी माँ।।

जिथे पुरियां होण मुरादां,
के ओ दर मैया दा,
सुन भगता,
रहे नचदा लाल दवारा,
जिथे माँ लाल वंड दी,
होई ऐ दयाल मेरी माँ,
करदे सबनू निहाल मेरी माँ।।

नहीं छडनी गुलामी तेरी,
तू रख चाहे मार,
दातिए, सुन अंबिए,
मेरे वरगे करोड़ां दाती,
तेरे जेहा होर कोई ना,
होई ऐ दयाल मेरी माँ,
करदे सबनू निहाल मेरी माँ।।

तेरे दर ते यात्री आए,
ओ मुखों जय जयकार बोलदे,
तेरा ‘चंचल’ तरले पावे,
तू चरणा च ला ले, दातिए,
होई ऐ दयाल मेरी माँ,
करदे सबनू निहाल मेरी माँ।।

(पुनरावृत्ति)
रुत झोलियाँ भरन दी आयी,
के मैया ने भंडार खोलिया हुण सब दा,
ओहदे दर ते थोड़ ना कोई,
के मंगण दी लोड कोई ना,
होई ऐ दयाल मेरी माँ,
करदे सबनू निहाल मेरी माँ।।

(नरेंद्र चंचल जी ) ------Rut Jholiyan Bharan di Aayi

मन में उमंग है, माँ के दर पर झोली फैलाने की। माँ ने अपने खजाने खोल दिए, कोई कमी नहीं, हर माँगने वाला निहाल होकर लौटता है, जैसे बादल बरसकर धरती को तृप्त कर दे।

तेरा भवन अनोखा, अम्बिके, जहाँ शान और प्रेम की ज्योत जलती है। मन के अंधेरे दूर कर, माँ, तू ही वह दीया है जो हर हृदय को रोशन करती है। जहाँ तेरा दर है, वहाँ मुरादें पूरी होती हैं। लाल झंडे लहराते हैं, भक्त नाचते हैं, और तू सबको प्रेम का दान बाँटती है, जैसे माँ अपने बच्चों को गोद में बिठाए।

तेरी गुलामी छोड़ूँ कैसे, दातिए? चाहे रख, चाहे मार, तेरा ही आसरा है। करोड़ों की तरह मैं भी तुझ पर न्योछावर, क्योंकि तुझ सा कोई नहीं। यात्री तेरे दर पर जयकार करते आएँ, और तेरा भक्त ‘चंचल’ बस तेरे चरणों में जगह माँगता है, जैसे पंछी अपनी डाल पर लौटे। माँ, तू दयालु है, सबको सुख देती है।

(नरेंद्र चंचल जी ) ------Rut Jholiyan Bharan di Aayi

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