जागो बंसीवारे ललना जागो भजन

जागो बंसीवारे ललना जागो भजन

जागो बंसीवारे ललना
जागो बंसीवारे ललना जागो मोरे प्यारे,
रजनी बीती भोर भयो है घर घर खुले किवाड़े,
गोपी दही मथत सुनियत है कंगना की झनकारे,
उठो लालजी भोर भयो है सुर नर ठाड़े द्वारे,
ग्वालबाल सब करत कोलाहल जय जय शब्द उचारे,
माखन रोटी हाथ में लीजे गौअन के रखवारे .
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर शरण आया को तारे,

रजनी बीती भोर भयो है , घर घर खुले किवारे ,
गोपी दही मथत सुनियत है कंगना के झनकारे !!
जागो वंशीवारे ललना जागो मोरे प्यारे

उठो लालजी भोर भयो है सुर नर ठाढे द्वारे ,
ग्वाल बाल सब करत कुलाहल ,जय जय शब्द उचारे !!
जागो वंशीवारे ललना जागो मोरे प्यारे
माखन रोटी हाथ में लीजे गौवन के रखवारे ,
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर ,सरन आया को तारे !!
जागो वंशीवारे ललना जागो मोरे प्यारे- श्री कृष्णा भजन


 Jaago Banseevaare Lalana
 
प्रभु को जगाने की यह पुकार, बस एक भक्त की तड़प है जो प्रेम में डूबा हुआ है। सुबह की पहली किरण के साथ, जब गोकुल के घर-घर के किवाड़ खुलते हैं और गोपियों के कंगनों की झनकार हवा में गूँजती है, तब मन कहता है—हे बंसीवाले, अब जागो, अपने ललना को दर्शन दो। यह प्रेम की ऐसी विनती है, जैसे कोई प्रिय को नींद से जगाकर उसकी मुस्कान देखना चाहे।  

ग्वालबालों का कोलाहल, जय-जयकार, और सुर-नरों की भीड़ प्रभु के द्वार पर इकट्ठी है। यह दृश्य उस उत्साह का है, जो भक्त का हृदय प्रभु के लिए रखता है—हर धड़कन में बस उनकी लीला का राग है। माखन-रोटी हाथ में लिए, गौओं का रखवाला बनकर प्रभु को बुलाना, यह भक्ति का वह सरल स्वरूप है, जो प्रेम को सबसे ऊपर रखता है।  

मीरा का यह भाव कि गिरिधर नागर शरण आए को तार देता है, एक संत की आस्था को दर्शाता है—प्रभु का नाम ही मुक्ति का मार्ग है। एक चिंतक देखता है कि यह जागरण केवल प्रभु का नहीं, बल्कि आत्मा का भी है, जो प्रेम में जागती है। और एक धर्मगुरु सिखाता है कि सच्चा भक्त वही, जो हर सुबह प्रभु को अपने हृदय में जगाए।  

जैसे गोपियाँ दही मथते हुए प्रभु की राह देखती हैं, वैसे ही भक्त का मन हर पल प्रभु के दर्शन को तरसता है। यह पुकार है कि हे बंसीवाले, अब जागो, क्योंकि तुम्हारे बिना यह सुबह अधूरी है।
 
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