आप संग हो मेरे और क्या चाहिये भजन
आप संग हो मेरे और क्या चाहिये भजन
आप संग हो मेरे और क्या चाहिये,
आप से ही तो मुझको साहरा मिला,
हो न हो कोई मुझको ये परवाह नहीं,
हाथ सिर पे जो मेरे तुम्हारा मिला..
अब ने चरणों में मुझको बिठा लीजिये,
सेवा मुझसे भी थोड़ी करा लीजिए,
मैं जो हु मौज में तेरी किरपा प्रभु,
तेरे दर से ही मुझको गुजारा मिला,
आप संग हो मेरे और क्या चाहिये,
आप से ही तो मुझको साहरा मिला,
नाम तेरे सिवा और लेता नहीं
साथ मेरा कोई भी तो देता नहीं,
हार में जीत में तू ही रहता सदा
मेरी नैया को भव से किनारा मिला,
आप संग हो मेरे और क्या चाहिये,
आप से ही तो मुझको साहरा मिला,
हाल यु देख कर भी न तरसाइये,
तुम को मेरी कसम है चले आइये,
दिल से सचिन का कही और लगदा नहीं,
जब मुझे रूप का ये नजारा मिला,
आप संग हो मेरे और क्या चाहिये,
आप से ही तो मुझको साहरा मिला,
आप से ही तो मुझको साहरा मिला,
हो न हो कोई मुझको ये परवाह नहीं,
हाथ सिर पे जो मेरे तुम्हारा मिला..
अब ने चरणों में मुझको बिठा लीजिये,
सेवा मुझसे भी थोड़ी करा लीजिए,
मैं जो हु मौज में तेरी किरपा प्रभु,
तेरे दर से ही मुझको गुजारा मिला,
आप संग हो मेरे और क्या चाहिये,
आप से ही तो मुझको साहरा मिला,
नाम तेरे सिवा और लेता नहीं
साथ मेरा कोई भी तो देता नहीं,
हार में जीत में तू ही रहता सदा
मेरी नैया को भव से किनारा मिला,
आप संग हो मेरे और क्या चाहिये,
आप से ही तो मुझको साहरा मिला,
हाल यु देख कर भी न तरसाइये,
तुम को मेरी कसम है चले आइये,
दिल से सचिन का कही और लगदा नहीं,
जब मुझे रूप का ये नजारा मिला,
आप संग हो मेरे और क्या चाहिये,
आप से ही तो मुझको साहरा मिला,
इस भजन में भक्त के श्रीकृष्णजी के प्रति अटूट विश्वास और समर्पण का भाव व्यक्त किया गया है। जब भक्त को प्रभु की कृपा प्राप्त होती है, तब वह संसार की किसी भी अन्य वस्तु की चाह नहीं रखता—केवल प्रभु का सान्निध्य ही उसके लिए सर्वोच्च सुख बन जाता है।
श्रद्धा की यह गहराई बताती है कि जब मनुष्य ईश्वर की छाया में आ जाता है, तब उसे न किसी सहारे की आवश्यकता होती है, न किसी अन्य प्रार्थना की। ईश्वर की कृपा से ही जीवन का मार्ग सुनिश्चित होता है, और भक्त यह स्वीकार करता है कि हर परिस्थिति में प्रभु उसका संबल बने रहते हैं।
यह भक्ति की वह अवस्था है, जहाँ हार-जीत, सुख-दुःख सब प्रभु की लीला बन जाते हैं। जब भक्त श्रीकृष्णजी के नाम को जीवन का आधार बना लेता है, तब वह सांसारिक मोह से मुक्त होकर केवल उनकी भक्ति में रम जाता है।
श्रद्धा की यह गहराई बताती है कि जब मनुष्य ईश्वर की छाया में आ जाता है, तब उसे न किसी सहारे की आवश्यकता होती है, न किसी अन्य प्रार्थना की। ईश्वर की कृपा से ही जीवन का मार्ग सुनिश्चित होता है, और भक्त यह स्वीकार करता है कि हर परिस्थिति में प्रभु उसका संबल बने रहते हैं।
यह भक्ति की वह अवस्था है, जहाँ हार-जीत, सुख-दुःख सब प्रभु की लीला बन जाते हैं। जब भक्त श्रीकृष्णजी के नाम को जीवन का आधार बना लेता है, तब वह सांसारिक मोह से मुक्त होकर केवल उनकी भक्ति में रम जाता है।