झूम झूम के आयी झूम झूम के माता भजन

झूम झूम के आयी झूम झूम के माता भजन

 (मुखड़ा)
झूम-झूम के आई, झूम-झूम के,
सिंह बैठी आई मोरी मैया।।

(अंतरा)
सांचे मन से माँ को पुकारो,
दौड़ी-दौड़ी आएं मोरी मैया,
झूम-झूम के आई, झूम-झूम के,
झूम-झूम के आई, झूम-झूम के।।

न फूल-पाती, न भोजन थाली,
भाव की भूखी हैं मोरी मैया,
झूम-झूम के आई, झूम-झूम के,
झूम-झूम के आई, झूम-झूम के।।

न चौकी कोई, न रेशम का आसन,
हृदय में वो तो विराजे मोरी मैया,
झूम-झूम के आई, झूम-झूम के,
झूम-झूम के आई, झूम-झूम के।।

‘राजेंद्र’ दर्शन की आशा लगी है,
सो सिंह पे बैठी आएं मोरी मैया,
झूम-झूम के आई, झूम-झूम के,
झूम-झूम के आई, झूम-झूम के।।

(पुनरावृति)
झूम-झूम के आई, झूम-झूम के,
सिंह बैठी आई मोरी मैया।।


झूम झूम के आईं झूम झूम के by rajendra prasad soni 

सुंदर भजन में माँ की महिमा और उनकी भक्ति का भाव उत्तम रूप में प्रकट हुआ है। भक्त अपने श्रद्धा और प्रेम में मग्न होकर माँ की आराधना कर रहा है, जहाँ माता दुर्गा सिंह पर विराजमान होकर भक्तों की पुकार सुनने आती हैं। इसमें बताया गया है कि माँ न तो फूल-पत्तों की, न ही महंगे भोग की भूखी हैं, बल्कि सच्चे भाव की भूखी हैं। जब कोई भक्त सच्चे मन से पुकार करता है, तो माँ उसकी आर्त-स्वर को सुनकर दौड़ी चली आती हैं। यह दर्शाता है कि भक्ति में बाह्य आडंबर की आवश्यकता नहीं, बल्कि हृदय की पवित्रता और निष्ठा ही सर्वोपरि है।

माँ का स्थान किसी सिंहासन या चौकी पर नहीं, बल्कि भक्त के हृदय में होता है। उनकी उपस्थिति वहाँ है जहाँ श्रद्धा और प्रेम से उन्हें स्मरण किया जाता है। यह भाव भक्त को आडंबर और दिखावे से दूर रखते हुए उसकी भक्ति को और अधिक शुद्ध और पवित्र बनाता है।

माँ के सिंह पर विराजित स्वरूप से स्पष्ट होता है कि वह संकटों को हरने वाली हैं। जब भी भक्त उनकी आराधना करता है, वे उसकी रक्षा के लिए तत्पर रहती हैं। यह भजन आत्मा को आनंदित करने वाला है, जहाँ माँ के प्रति प्रेम और भक्ति का अटूट प्रवाह बहता है।

Singer,-rajendra prasad soni
Lyricist-rajendra prasad soni
Music by-ranendra prasad soni

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