बेटे का सम्मान है जग में बेटी
बेटे का सम्मान है जग में बेटी का कोई मान नहीं भजन
बेटे का सम्मान है जग में बेटी का कोई मान नहीं,
दुनिया वालो मुझको बता दो बेटी क्या संतान नही,
बेटा क्या यहाँ लेकर आया बेटी क्या नही लाइ है,
बिन बेटी के दुनिया वालो सुनी पड़ी कल्हाई है,
रक्षा बंधन भईया दूज का बिकुल तुमको ध्यान नही,
दुनिया वालो मुझको बता दो बेटी क्या संतान नही
बेटा तारे एक कुल को बेटी तीन को तारती है,
मात पिता नाना नानी के सपनो को ये सवारती है,
बिन बेटी के दुनिया वालो होता कन्यादान नही,
दुनिया वालो मुझको बता दो बेटी क्या संतान नही
बेटा साथ छोड़ भी देगा बेटी साथ न छोड़े गी,
छोड़े गी वो जिस दिन नाता दो रिश्तो को तोड़े गी,
बेटी को ठुकराने वाला वो इंसान इंसान नही,
दुनिया वालो मुझको बता दो बेटी क्या संतान नही
दुनिया वालो मुझको बता दो बेटी क्या संतान नही,
बेटा क्या यहाँ लेकर आया बेटी क्या नही लाइ है,
बिन बेटी के दुनिया वालो सुनी पड़ी कल्हाई है,
रक्षा बंधन भईया दूज का बिकुल तुमको ध्यान नही,
दुनिया वालो मुझको बता दो बेटी क्या संतान नही
बेटा तारे एक कुल को बेटी तीन को तारती है,
मात पिता नाना नानी के सपनो को ये सवारती है,
बिन बेटी के दुनिया वालो होता कन्यादान नही,
दुनिया वालो मुझको बता दो बेटी क्या संतान नही
बेटा साथ छोड़ भी देगा बेटी साथ न छोड़े गी,
छोड़े गी वो जिस दिन नाता दो रिश्तो को तोड़े गी,
बेटी को ठुकराने वाला वो इंसान इंसान नही,
दुनिया वालो मुझको बता दो बेटी क्या संतान नही
सुंदर भजन में सामाजिक चेतना और मानवीय मूल्यों को प्रदर्शित किया गया है। यह एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि समाज में बेटी और बेटे के बीच कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। बेटी केवल एक संतान नहीं, बल्कि परिवार और रिश्तों की आधारशिला होती है, जो प्रेम, त्याग और समर्पण का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करती है।
बेटी केवल एक परिवार को नहीं, बल्कि तीन परिवारों को संवारने वाली होती है—मात-पिता का मान बढ़ाती है, नाना-नानी के सपनों को साकार करती है और स्वयं जिस घर में जाती है, वहाँ अपने प्रेम से प्रकाश फैलाती है। उसके बिना जीवन अधूरा प्रतीत होता है, क्योंकि स्नेह, समर्पण और सच्ची सेवा की भावना उसमें सहज रूप से विद्यमान रहती है।
यह भाव प्रकट करता है कि रिश्तों की सच्ची डोर बेटी के हाथों में होती है। बेटा अपने उत्तरदायित्वों को निभाकर अपनी राह पर बढ़ सकता है, लेकिन बेटी स्नेह की ऐसी डोर बांधती है जो जीवनभर अटूट रहती है। उसकी उपस्थिति परिवार में स्थायित्व और आत्मीयता बनाए रखती है।
बेटी केवल एक परिवार को नहीं, बल्कि तीन परिवारों को संवारने वाली होती है—मात-पिता का मान बढ़ाती है, नाना-नानी के सपनों को साकार करती है और स्वयं जिस घर में जाती है, वहाँ अपने प्रेम से प्रकाश फैलाती है। उसके बिना जीवन अधूरा प्रतीत होता है, क्योंकि स्नेह, समर्पण और सच्ची सेवा की भावना उसमें सहज रूप से विद्यमान रहती है।
यह भाव प्रकट करता है कि रिश्तों की सच्ची डोर बेटी के हाथों में होती है। बेटा अपने उत्तरदायित्वों को निभाकर अपनी राह पर बढ़ सकता है, लेकिन बेटी स्नेह की ऐसी डोर बांधती है जो जीवनभर अटूट रहती है। उसकी उपस्थिति परिवार में स्थायित्व और आत्मीयता बनाए रखती है।
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