क्यों आ के रो रहा है गोविन्द की गली
क्यों आ के रो रहा है गोविन्द की गली में
क्यों आ के रो रहा है, गोविन्द की गली में।हर दर्द की दवा है, गोविन्द की गली में॥
तू खुल के उनसे कह दे, जो दिल में चल में चल रहा है,
वो जिंदगी के ताने बाने जो बुन रहा है।
हर सुबह खुशनुमा है, गोविन्द की गली में॥
तुझे इंतज़ार क्यों है, किसी इस रात की सुबह का,
मंजिल पे गर निगाहें, दिन रात क्या डगर क्या।
हर रात रंगनुमा है, गोविन्द की गली में॥
कोई रो के उनसे कह दे, कोई ऊँचे बोल बोले,
सुनता है वो उसी की, बोली जो उनकी बोले।
हवाएं अदब से बहती हैं, गोविन्द की गली में॥
दो घुट जाम के हैं, हरी नाम के तू पी ले,
फिकरे हयात क्यों है, जैसा है वो चाहे जी ले।
साकी है मयकदा है, गोविन्द की गली में॥
इस और तू खड़ा है, लहरों से कैसा डरना,
मर मर के जी रहा है, पगले यह कैसा जीना।
कश्ती है ना खुदा है, गोविन्द की गली में॥
जीवन की कठिनाइयाँ एक जाल की भांति होती हैं, जिसे व्यक्ति अपने विचारों और कर्मों से लगातार बुनता रहता है। किंतु जब आत्मा परम सत्ता की ओर मुड़ती है, तो हर दिन नवीन ऊर्जा और उत्साह लेकर आता है।
यह भाव आत्मविश्वास को प्रोत्साहित करता है कि जब मंजिल स्पष्ट हो, तो दिन-रात की उलझनें व्यर्थ हैं। यात्रा का प्रत्येक पड़ाव तब आनंदमय हो जाता है, जब अंतर्मन ईश्वरीय आशीर्वाद को स्वीकार करता है। ईश्वर की कृपा हर उस व्यक्ति पर बरसती है जो सच्चे हृदय से उन्हें पुकारता है।
चेतावनी भजन : चेतावनी भजन का का मूल विषय व्यक्ति को उसके अवगुणों के बारे में सचेत करना और सत्य की राह पर अग्रसर करना होता है। राजस्थानी चेतावनी भजनो का मूल विषय यही है। गुरु की शरण में जाकर जीवन के उद्देश्य के प्रति व्यक्ति को सचेत करना ही इनका भाव है। चेतावनी भजनों में कबीर के भजनो को क्षेत्रीय भाषा में गया जाता है या इनका कुछ अंश काम में लिया जाता है।
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