भगत के वश में है भगवान भजन
भगत के वश में है भगवान भजन
भगत के वश में है भगवानभक्त बिना ये कुछ भी नहीं है
भक्त है इसकी शान
भगत मुरली वाले की रोज बृन्दावन डोले
कृष्णा को लल्ला समझे, कृष्णा को लल्ला बोले
श्याम के प्यार में पागल, हुई वो श्याम दीवानी
अगर भजनो में लागे, छोड़ दे दाना पानी
प्यार कारन वो लागी उससे अपने पुत्र समान
भगत के वश में है भगवान...
वो अपने कृष्णा लला को गले से लगा के रखे
हमेशा सजा कर रखे की लाड लड़ा कर रखे
वो दिन में भाग के देखे, की रात में जाग के देखे
कभी अपने कमरे से, श्याम को झांक के देखे
अपनी जान से ज्यादा रखती अपने लला का ध्यान
भगत के वश में है भगवान...
वो लल्ला लल्ला पुकारे हाय क्या जुल्म हुआ रे
बुढ़ापा बिगड़ गया जी लाल मेरा कैसे गिरा रे
जाओ डॉक्टर को लाओ लाल का हाल दिखाओ
अगर इसको कुछ हो गया मुझे भी मार गिराओ
रोते रोते पागल होगई घर वाले परेशान
भगत के वश में है भगवान...
नब्ज को टटोल के बोले, ये तेरा लाल सही है
कसम खा के कहता हूँ कोई तकलीफ नहीं है
वो माथा देख के बोले ये तेरा लाल सही है
माई चिंता मत करियो कोई तकलीफ नहीं है
जोहि सीने से लगाया पसीना जम कर आया
उसने कई बार लगाया और डॉक्टर चकराया
धड़क रहा सीना लल्ला का, मूर्ति में थे प्राण
भगत के वश में है भगवान...
देख तेरे लाल की माया बड़ा घबरा रहा हूँ
जहाँ से तू लल्ला लाई वही पे जा रहा हूँ
लाल तेरा जुग जुग जिए बड़ा एहसान किया है
आज से सारा जीवन उसी के नाम किया है
बनवारी तेरी माँ नहीं पागल पागल सारा जहाँ
भगत के वश में है भगवान...
वृंदावन बिहारी लाल की जय
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सुंदर भजन में भक्ति की पराकाष्ठा को प्रदर्शित किया गया है, जहाँ प्रेम और श्रद्धा ईश्वर को भक्त के वश में कर देती है। यह अनुभूति हृदय को आस्था से भर देती है और यह दिखाती है कि जब समर्पण पूर्ण होता है, तब भगवान स्वयं अपनी कृपा से भक्त के निकट आ जाते हैं।श्रीकृष्णजी के प्रति यह प्रेम केवल बाहरी नहीं, बल्कि आत्मिक स्तर पर गहरा जुड़ाव दर्शाता है। भक्ति का वह अनूठा स्वरूप जिसमें माँ अपने लल्ला को पुत्रवत मानती है, उसकी प्रत्येक भावना में श्रीकृष्णजी की छवि समाहित रहती है। यह सच्चे प्रेम और समर्पण की चरम अवस्था है, जहाँ सांसारिक इच्छाएँ गौण हो जाती हैं और केवल ईश्वर के प्रति अनुराग शेष रहता है।
श्रद्धा इतनी गहरी होती है कि माँ अपने श्रीकृष्णजी की मूर्ति को ही जीवंत अनुभव करती है। उसके स्पर्श से मूर्ति में जीवन का संचार होता है, क्योंकि उसका प्रेम निर्मल और निष्काम है। यह भक्त की उस शक्ति को दर्शाता है, जो ईश्वर को भी अपने अनुराग में बांध सकती है। जब समर्पण संपूर्ण होता है, तब ईश्वर स्वयं भक्त की पीड़ा को हरने के लिए प्रकट होते हैं।