धन माया और जोबन काया भजन

धन माया और जोबन काया भजन

धन माया और जोबन काया
धन माया और जोबन काया की 
मत कर तु मरोड़

एक दिन ऐसा आवै भाई
जाना पड़े सब छोड़
धन माया और जोबन काया

धन माया और जोबन काया की 
मत कर तु मरोड़
क्यूँ चालै सै तु तण -तण कै
सांस राम नै दी सै गनके

क्यूँ चालै सै तु तण -तण कै
सांस राम नै दी सै गनके

जिस दिन गिनती होजा पूरी
देंगी ये नाता तोड़

धन माया और जोबन काया
धन माया और जोबन काया की 
मत कर तु मरोड़
एक दिन ऐसा आवै भाई
जाना पड़े सब छोड़

धन माया और जोबन काया
धन माया और जोबन काया की 
मत कर तु मरोड़ 


सुंदर भजन में जीवन की नश्वरता और सच्चे मार्ग की ओर ध्यान देने का उद्गार व्यक्त होता है। यह भाव मन को स्मरण कराता है कि धन, माया और शारीरिक सौंदर्य क्षणभंगुर हैं, जैसे नदी के किनारे की रेत जो बह जाती है। इनके पीछे भागना व्यर्थ है, क्योंकि ये सुख केवल छाया की तरह साथ छोड़ देते हैं।
 
जीवन का हर पल अनमोल है, जो राम की कृपा से मिला है। फिर भी मन तिनके-तिनके के लिए भटकता है, मानो सच्चाई को भूल गया हो। यह भजन उस सत्य को सामने लाता है कि एक दिन सांसों की गिनती पूरी होगी, और तब न धन साथ देगा, न माया, न ही काया। जैसे पंछी पिंजरे से उड़ जाता है, वैसे ही आत्मा सब कुछ छोड़कर चली जाएगी।

यह उद्गार मन को जागृत करता है कि जीवन का असली धन राम का नाम और उनकी भक्ति है। इनके बिना सारी कमाई अधूरी है। जैसे दीया तेल के बिना नहीं जलता, वैसे ही जीवन बिना प्रभु के स्मरण के अधूरा है।  

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