चल पड़ा शिव का पुजारी शिव

चल पड़ा शिव का पुजारी शिव को मनाने के लिए

(मुखड़ा)
चल पड़ा शिव का पुजारी, शिव को मनाने के लिए।
हाथ में गंगाजल गडवा, शिव को चढ़ाने के लिए।।

(अंतरा)
बैठ गया शिवलिंग के आगे, करने लगा स्तुतियाँ।
हाथ जब ऊपर उठाया, घंटा बजाने के लिए।।
देखकर सोने का घंटा, पाप मन में आ गया।
हो गया तैयार वह, तो घंटा चुराने के लिए।।
चढ़ गया शिवलिंग के ऊपर, घंटा ले जाने के लिए।
हो गए प्रकट शंभू, दर्शन दिखाने के लिए।।
जल चढ़ाते हैं सभी, मुझको मनाने के लिए।
तू तो खुद ही चढ़ गया, मुझको रिझाने के लिए।।

(पुनरावृत्ति)
तू तो खुद ही चढ़ गया, मुझको रिझाने के लिए।।


सुंदर भजन में भक्ति और परीक्षा का अनूठा भाव व्यक्त किया गया है। इसमें शिव के समक्ष एक भक्त के आने और उसके मन में उत्पन्न विचारों का चित्रण किया गया है। शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए पहुंचे हुए पुजारी की भावना भक्ति से ओत-प्रोत होती है, लेकिन जब वह सोने के घंटे को देखता है, तो उसके मन में लोभ उत्पन्न हो जाता है। यह एक गहरी आध्यात्मिक सीख देता है—शिव की भक्ति में लौकिक मोह बाधा बन सकता है, लेकिन जब व्यक्ति सच्चे भाव से शिव की आराधना करता है, तो शिव उसे सही मार्ग दिखाते हैं।

शिव के दिव्य स्वरूप के प्रकट होने से यह संकेत मिलता है कि वे अपने भक्तों को उनके कर्मों का बोध कराते हैं। केवल जल चढ़ाने से नहीं, बल्कि सच्ची श्रद्धा और निष्कलंक हृदय से ही शिव की कृपा प्राप्त की जा सकती है।
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