दुख से तप्त मरूस्थल भव में, सघन वृक्ष सम छायाकार ।।
पुष्पदन्त पद – छत्र – छाँव में हम आश्रय पावे सुखकार ।।
जम्बूद्विप के भारत क्षेत्र में, काकन्दी नामक नगरी में ।।
राज्य करें सुग्रीव बलधारी, जयरामा रानी थी प्यारी ।।
नवमी फाल्गुन कृष्ण बल्वानी, षोडश स्वप्न देखती रानी ।।
सुत तीर्थंकर हर्भ में आएं, गर्भ कल्याणक देव मनायें ।।
प्रतिपदा मंगसिर उजयारी, जन्मे पुष्पदन्त हितकारी ।।
जन्मोत्सव की शोभा नंयारी, स्वर्गपूरी सम नगरी प्यारी ।।
आयु थी दो लक्ष पूर्व की, ऊँचाई शत एक धनुष की ।।
थामी जब राज्य बागडोर, क्षेत्र वृद्धि हुई चहुँ ओर ।।
इच्छाएँ उनकी सीमीत, मित्र पर्भु के हुए असीमित ।।
एक दिन उल्कापात देखकर, दृष्टिपाल किया जीवन पर ।।
स्थर कोई पदार्थ न जग में, मिले न सुख किंचित् भवमग में ।।
ब्रह्मलोक से सुरगन आए, जिनवर का वैराग्य बढ़ायें।।
सुमति पुत्र को देकर राज, शिविका में प्रभु गए विराज ।।
पुष्पक वन में गए हितकार, दीक्षा ली संगभूप हज़ार ।।
गए शैलपुर दो दिन बाद, हुआ आहार वहाँ निराबाद ।।
पात्रदान से हर्षित होमकर, पंचाश्चर्य करे सुर आकर ।।
प्रभुवर लोट गए उपवन को, तत्पर हुए कर्म- छेदन को ।।
लगी समाधि नाग वृक्ष तल, केवलज्ञान उपाया निर्मल ।।
इन्द्राज्ञा से समोश्रण की, धनपति ने आकर रचना की ।।
दिव्य देशना होती प्रभु की, ज्ञान पिपासा मिटी जगत की ।।
अनुप्रेक्षा द्वादश समझाई, धर्म स्वरूप विचारो भाई ।।
शुक्ल ध्यान की महिमा गाई, शुक्ल ध्यान से हों शिवराई ।।
चारो भेद सहित धारो मन, मोक्षमहल में पहुँचो तत्क्षण ।।
मोक्ष मार्ग दर्शाया प्रभु ने, हर्षित हुए सकल जन मन में ।।
इन्द्र करे प्रार्थना जोड़ कर, सुखद विहार हुआ श्री जिनवर ।।
गए अन्त में शिखर सम्मेद, ध्यान में लीन हुए निरखेद ।।
शुक्ल ध्यान से किया कर्मक्षय, सन्ध्या समय पाया पद आक्षय ।।
अश्विन अष्टमी शुकल महान, मोक्ष कल्याणक करें सुर आन ।।
सुप्रभ कूट की करते पूजा, सुविधि नाथ नाम है दूजा ।।
मगरमच्छ है लक्षण प्रभु का, मंगलमय जीवन था उनका ।।
शिखर सम्मेद में भारी अतिशय, प्रभु प्रतिमा है चमत्कारमय ।।
कलियुग में भी आते देव, प्रतिदिन नृत्य करें स्वयमेव ।।
घुंघरू की झंकार गूंजती, सब के मन को मोहित करती ।।
ध्वनि सुनी हमने कानो से, पूजा की बहु उपमानो से ।।
हमको है ये दृड श्रद्धान, भक्ति से पायें शिवथान ।।
भक्ति में शक्ति है न्यारी, राह दिखायें करूणाधारी ।।
पुष्पदन्त गुणगान से, निश्चित हो कल्याण ।।
हम सब अनुक्रम से मिले, अन्तिम पद निर्वाण ।।
पुष्पदन्त पद – छत्र – छाँव में हम आश्रय पावे सुखकार ।।
जम्बूद्विप के भारत क्षेत्र में, काकन्दी नामक नगरी में ।।
राज्य करें सुग्रीव बलधारी, जयरामा रानी थी प्यारी ।।
नवमी फाल्गुन कृष्ण बल्वानी, षोडश स्वप्न देखती रानी ।।
सुत तीर्थंकर हर्भ में आएं, गर्भ कल्याणक देव मनायें ।।
प्रतिपदा मंगसिर उजयारी, जन्मे पुष्पदन्त हितकारी ।।
जन्मोत्सव की शोभा नंयारी, स्वर्गपूरी सम नगरी प्यारी ।।
आयु थी दो लक्ष पूर्व की, ऊँचाई शत एक धनुष की ।।
थामी जब राज्य बागडोर, क्षेत्र वृद्धि हुई चहुँ ओर ।।
इच्छाएँ उनकी सीमीत, मित्र पर्भु के हुए असीमित ।।
एक दिन उल्कापात देखकर, दृष्टिपाल किया जीवन पर ।।
स्थर कोई पदार्थ न जग में, मिले न सुख किंचित् भवमग में ।।
ब्रह्मलोक से सुरगन आए, जिनवर का वैराग्य बढ़ायें।।
सुमति पुत्र को देकर राज, शिविका में प्रभु गए विराज ।।
पुष्पक वन में गए हितकार, दीक्षा ली संगभूप हज़ार ।।
गए शैलपुर दो दिन बाद, हुआ आहार वहाँ निराबाद ।।
पात्रदान से हर्षित होमकर, पंचाश्चर्य करे सुर आकर ।।
प्रभुवर लोट गए उपवन को, तत्पर हुए कर्म- छेदन को ।।
लगी समाधि नाग वृक्ष तल, केवलज्ञान उपाया निर्मल ।।
इन्द्राज्ञा से समोश्रण की, धनपति ने आकर रचना की ।।
दिव्य देशना होती प्रभु की, ज्ञान पिपासा मिटी जगत की ।।
अनुप्रेक्षा द्वादश समझाई, धर्म स्वरूप विचारो भाई ।।
शुक्ल ध्यान की महिमा गाई, शुक्ल ध्यान से हों शिवराई ।।
चारो भेद सहित धारो मन, मोक्षमहल में पहुँचो तत्क्षण ।।
मोक्ष मार्ग दर्शाया प्रभु ने, हर्षित हुए सकल जन मन में ।।
इन्द्र करे प्रार्थना जोड़ कर, सुखद विहार हुआ श्री जिनवर ।।
गए अन्त में शिखर सम्मेद, ध्यान में लीन हुए निरखेद ।।
शुक्ल ध्यान से किया कर्मक्षय, सन्ध्या समय पाया पद आक्षय ।।
अश्विन अष्टमी शुकल महान, मोक्ष कल्याणक करें सुर आन ।।
सुप्रभ कूट की करते पूजा, सुविधि नाथ नाम है दूजा ।।
मगरमच्छ है लक्षण प्रभु का, मंगलमय जीवन था उनका ।।
शिखर सम्मेद में भारी अतिशय, प्रभु प्रतिमा है चमत्कारमय ।।
कलियुग में भी आते देव, प्रतिदिन नृत्य करें स्वयमेव ।।
घुंघरू की झंकार गूंजती, सब के मन को मोहित करती ।।
ध्वनि सुनी हमने कानो से, पूजा की बहु उपमानो से ।।
हमको है ये दृड श्रद्धान, भक्ति से पायें शिवथान ।।
भक्ति में शक्ति है न्यारी, राह दिखायें करूणाधारी ।।
पुष्पदन्त गुणगान से, निश्चित हो कल्याण ।।
हम सब अनुक्रम से मिले, अन्तिम पद निर्वाण ।।
Dukh Se Tapt Maroosthal Bhav Mein, Saghan Vrksh Sam Chhaayaakaar ..
Pushpadant Pad – Chhatr – Chhaanv Mein Ham Aashray Paave Sukhakaar ..
Jamboodvip Ke Bhaarat Kshetr Mein, Kaakandee Naamak Nagaree Mein ..
Raajy Karen Sugreev Baladhaaree, Jayaraama Raanee Thee Pyaaree ..
Navamee Phaalgun Krshn Balvaanee, Shodash Svapn Dekhatee Raanee ..
Sut Teerthankar Harbh Mein Aaen, Garbh Kalyaanak Dev Manaayen ..
Pratipada Mangasir Ujayaaree, Janme Pushpadant Hitakaaree ..
Janmotsav Kee Shobha Nanyaaree, Svargapooree Sam Nagaree Pyaaree ..
Aayu Thee Do Laksh Poorv Kee, Oonchaee Shat Ek Dhanush Kee ..
Thaamee Jab Raajy Baagador, Kshetr Vrddhi Huee Chahun Or ..
Ichchhaen Unakee Seemeet, Mitr Parbhu Ke Hue Aseemit ..
Ek Din Ulkaapaat Dekhakar, Drshtipaal Kiya Jeevan Par ..
Sthar Koee Padaarth Na Jag Mein, Mile Na Sukh Kinchit Bhavamag Mein ..
Brahmalok Se Suragan Aae, Jinavar Ka Vairaagy Badhaayen..
Sumati Putr Ko Dekar Raaj, Shivika Mein Prabhu Gae Viraaj ..
Pushpak Van Mein Gae Hitakaar, Deeksha Lee Sangabhoop Hazaar ..
Gae Shailapur Do Din Baad, Hua Aahaar Vahaan Niraabaad ..
Paatradaan Se Harshit Homakar, Panchaashchary Kare Sur Aakar ..
Prabhuvar Lot Gae Upavan Ko, Tatpar Hue Karm- Chhedan Ko ..
Lagee Samaadhi Naag Vrksh Tal, Kevalagyaan Upaaya Nirmal ..
Indraagya Se Samoshran Kee, Dhanapati Ne Aakar Rachana Kee ..
Divy Deshana Hotee Prabhu Kee, Gyaan Pipaasa Mitee Jagat Kee ..
Anupreksha Dvaadash Samajhaee, Dharm Svaroop Vichaaro Bhaee ..
Shukl Dhyaan Kee Mahima Gaee, Shukl Dhyaan Se Hon Shivaraee ..
Chaaro Bhed Sahit Dhaaro Man, Mokshamahal Mein Pahuncho Tatkshan ..
Moksh Maarg Darshaaya Prabhu Ne, Harshit Hue Sakal Jan Man Mein ..
Indr Kare Praarthana Jod Kar, Sukhad Vihaar Hua Shree Jinavar ..
Gae Ant Mein Shikhar Sammed, Dhyaan Mein Leen Hue Nirakhed ..
Shukl Dhyaan Se Kiya Karmakshay, Sandhya Samay Paaya Pad Aakshay ..
Ashvin Ashtamee Shukal Mahaan, Moksh Kalyaanak Karen Sur Aan ..
Suprabh Koot Kee Karate Pooja, Suvidhi Naath Naam Hai Dooja ..
Magaramachchh Hai Lakshan Prabhu Ka, Mangalamay Jeevan Tha Unaka ..
Shikhar Sammed Mein Bhaaree Atishay, Prabhu Pratima Hai Chamatkaaramay ..
Kaliyug Mein Bhee Aate Dev, Pratidin Nrty Karen Svayamev ..
Ghungharoo Kee Jhankaar Goonjatee, Sab Ke Man Ko Mohit Karatee ..
Dhvani Sunee Hamane Kaano Se, Pooja Kee Bahu Upamaano Se ..
Hamako Hai Ye Drd Shraddhaan, Bhakti Se Paayen Shivathaan ..
Bhakti Mein Shakti Hai Nyaaree, Raah Dikhaayen Karoonaadhaaree ..
Pushpadant Gunagaan Se, Nishchit Ho Kalyaan ..
Ham Sab Anukram Se Mile, Antim Pad Nirvaan ..
जैन धर्म के नौवें तीर्थंकर भगवान पुष्पदंत का जन्म अयोध्या में राजा अभिनंदन और रानी विभा देवी के पुत्र के रूप में हुआ माना जाता है। पुष्पदंत जी ने 30 वर्ष की आयु में दीक्षा ली और गौतम ऋषि से ज्ञान प्राप्त किया था। भगवान पुष्पदंत अहिंसा, क्षमा, सत्य आदि जैन धर्म के सिद्धांतों के प्रबल प्रचारकथे। उनकी रचना "महावीर चरित" जैन धर्म का महत्वपूर्ण ग्रंथ है। भगवान शिव की स्तुति में लिखा गया "शिवमहिम्न स्तोत्र" भी उनकी ही रचना है। जैन धर्म में भगवान पुष्पदंत ज्ञान और शिक्षा के प्रतीक हैं और उनकी मूर्तियां अक्सर कमल के फूल पर विराजमान प्रदर्शित की जाती हैं।