अशरण जग में शरण एक शुद्धातम ही भाई Asharan Jag Me Sharan Bhajan

अशरण जग में शरण एक शुद्धातम ही भाई भजन Asharan Jag Me Sharan

 
अशरण जग में शरण एक शुद्धातम ही भाई भजन Asharan Jag Me Sharan

अशरण जग में शरण एक, शुद्धातम ही भाई।
धरो विवेक ह्रदय में आशा, पर की दुखदाई।।

सुख दुःख कोई ना बाँट सके, यह परम सत्य जानों,
कर्मोदय अनुसार अवस्था, संयोगी मानों।

कर्म न कोई देवे लेवे, प्रत्यक्ष ही देखो,
जन्मे मरे अकेला चेतन, तत्त्वज्ञान लेखो।

पापोदय में नहीं सहाय का, निमित्त बने कोई,
पुण्योदय में नहीं दंड का, भी निमित्त होई।

इष्ट अनिष्ट कल्पना त्यागो, हर्ष विषाद तजों,
समता धर महिमामय अपना, आतम आप भजो।

शाश्वत सुख सागर अंतर में, देखो लहरावे,
दुर्विकल्प में जो उलझे, वह लेश ना सुख पावे,

मत देखो संयोगों को, कर्मोदय मत देखो,
मत देखो पर्यायों को, गुण भेद नहीं देखो।

अहो देखने योग्य एक, ध्रुव ज्ञायक प्रभु देखो,
हो अंतर्मुख सहज दीखता, अपना प्रभु देखो।

देखत होउ निहाल अहो निज परम प्रभु देखो,
हो अंतर्मुख सहज दीखता अपना प्रभु देखो।

निश्चय नित्यानंदमयी, अक्षय पद पाओगे,
दुःखमय आवागमन मिटे, भगवान कहाओगे। 
 

परमार्थ शरण : अशरण जग में शरण एक शुद्धातम ही भाई : जिनेन्द्र आराधना - आध्यात्मिक पाठ : Ravindra Ji
 
Asharan Jag Mein Sharan Ek, Shuddhaatam Hi Bhai.
Dharo Vivek Hraday Mein Aasha, Par Ki Dukhadai..

Sukh Duhkh Koi Na Baant Sake, Yah Param Saty Jaanon,
Karmoday Anusaar Avastha, Sanyogi Maanon.

Karm Na Koi Deve Leve, Pratyaksh Hi Dekho,
Janme Mare Akela Chetan, Tattvagyaan Lekho.

Paapoday Mein Nahin Sahaay Ka, Nimitt Bane Koi,
Punyoday Mein Nahin Dand Ka, Bhi Nimitt Hoi.

Isht Anisht Kalpana Tyaago, Harsh Vishaad Tajon,
Samata Dhar Mahimaamay Apana, Aatam Aap Bhajo.

Shaashvat Sukh Saagar Antar Mein, Dekho Laharaave,
Durvikalp Mein Jo Ulajhe, Vah Lesh Na Sukh Paave,

Mat Dekho Sanyogon Ko, Karmoday Mat Dekho,
Mat Dekho Paryaayon Ko, Gun Bhed Nahin Dekho.

Aho Dekhane Yogy Ek, Dhruv Gyaayak Prabhu Dekho,
Ho Antarmukh Sahaj Dikhata, Apana Prabhu Dekho.

Dekhat Hou Nihaal Aho Nij Param Prabhu Dekho,
Ho Antarmukh Sahaj Dikhata Apana Prabhu Dekho.

Nishchay Nityaanandamayi, Akshay Pad Paoge,
Duhkhamay Aavaagaman Mite, Bhagavaan Kahaoge.
 
अशरण जग में चंद्रनाथ जी
अशरण जग में चंद्रनाथ जी ने सांचे शरण तुम ही हो।
भवसागर से पार लगाओ तारण तरण तुम ही हो ॥टेक॥

दर्शन पाकर अहो जिनेश्वर मन में अति उल्लास हुआ
देहादिक से भिन्न आत्मा अंतर में प्रत्यक्ष हुआ॥
आराधन की लगी लगन प्रभु परमादर्श तुम ही हो॥

अद्भुत प्रभुता झलक रही है निरख के हुवा निहाल में
रत्नत्रय की महिमा बरसे हुवा सो मालामाल में
समता मई ही जीवन होवे प्रभु अवलंब तुम ही हो॥

मोह न आवे क्षोभ ना आवे ज्ञाता मात्र रहूं मैं
अविरल ध्याऊँ चित स्वरूप को अक्षय सौख्य लहू में
हो निष्काम वंदना स्वामी मेरे साध्य तुम ही हो ॥
 
रचनाकार : बाल ब्र. पं. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन', अमायन (म.प्र.)
'जिनेन्द्र आराधना - आध्यात्मिक पाठ' का संकलन यूट्यूब पर प्रस्तुत है।
गायक : रवि के. त्रिपाठी
निर्माण एवं निर्देशन : मोनिका जैन, निकिता जैन
 
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