डमरू तेरा शिव शंकर डमरू वालिया
डमरू तेरा शिव शंकर डमरू वालिया
डमरू तेरा शिव शंकर डमरू वालियाडमरू तेरा शिव शंकर डमरू वालिया
डमरू तेरा शिव शंकर डमरू वालिया,
तेरे डमरू दी मतवाली हो गई गोरा,
धरती अम्बर ते पताले धुमा पे गिया,
डमरू सुनके तेरा भगता चडिया लोरा,
तीना लोका दे विच डमरू जद वि वजदा है,
नचन देव लोक दे देवी देवेते सारे,
तेरे डमरू भोलियाँ जिसदे मन नु भा गया,
उसनू स्वर्गा तो वध आंदे नज़ारे,
चढ़गी डमरू दी मस्ती मस्त फकीरा,
पूजा डमरू दी कर दा हर संसारी,
गुगे माडी उते जद वी डमरू वजदा है,
साह हर पीर आखे धन भोले भंडारी,
भोले बाबा जी तेरे खेद न्यारे,
ब्रह्मा विष्णु है संगी साथी तेरे,
त्रिपुरी शंकर शम्भू जटाधरिया,
तू ते ला ले विच केलाश दे डेरे,
सुन्दर भजन में श्री भोलेनाथ की महिमा और उनके डमरू की दिव्य ध्वनि का प्रभाव प्रकट होता है। जब महादेव अपने डमरू को बजाते हैं, तब यह केवल संगीत नहीं, बल्कि सृष्टि की गूंज होती है—जिसमें ब्रह्मांड की अनंत शक्तियाँ नृत्य करती हैं। इस ध्वनि में सृजन, विनाश और पुनर्जीवन का रहस्य समाहित होता है।
शिवजी का डमरू ध्यान और चेतना का प्रतीक है, जो केवल ध्वनि उत्पन्न नहीं करता, बल्कि आत्मा को जागृत करता है। सुन्दर भजन में यह भाव स्पष्ट होता है कि जब शिवजी का डमरू गूंजता है, तब तीनों लोकों में उनकी शक्ति का कंपन महसूस किया जाता है। देव, संत, और भक्त सभी इस दिव्य ध्वनि में रम जाते हैं, और उनके मन शिवजी की भक्ति में मग्न हो जाते हैं।
शिवजी का स्वरूप अनूठा है—वे ब्रह्मा और विष्णु के संग संपूर्ण सृष्टि के आराध्य हैं। उनके चरणों में समर्पण से ही भक्ति का वास्तविक अनुभव होता है। उनकी साधना से भक्त सांसारिक मोह से मुक्त होकर आत्मा के शुद्धतम रूप में प्रवेश करता है। सुन्दर भजन में यही भाव प्रकट होता है कि शिवजी की आराधना केवल भौतिक जगत की मुक्ति नहीं, बल्कि आत्मा की गहन शांति का अनुभव भी कराती है।
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