देखो वृन्दावन की कुंज गलिन में नाचत

देखो वृन्दावन की कुंज गलिन में नाचत नंदकुमार

(मुखड़ा)
देखो वृंदावन की कुंज गलिन में, नाचत नंदकुमार।
मोरे मुकुट सिर ऊपर सोहे, गल वैजयंती माल,
पीतांबर कटि बीच विराजे, मुरली अधर सुधार।।

(अंतरा)
वीणा, ताल, मृदंगी बाजे, बाजे झांझ, सितार,
खन-खन, खन-खन नूपुर बाजे, कर-कंगन झंकार।।

(अंतरा)
ग्वालबाल सब मिलकर नाचें, नाचें ब्रज की नार,
सखियों के संग राधा नाचें, कर सोलह सिंगार।।

(अंतरा)
जलचर मोहे, थलचर मोहे, मोहे नभ संसार,
ब्रह्मानंद, मुनीश्वर मोहे, मुरली धुन निर्धार।।

(पुनरावृति)
देखो वृंदावन की कुंज गलिन में, नाचत नंदकुमार।।

Dekho Vrindavan Ki Kunj Gali Mein Nache Nand Kishore | देखो वृन्दावन की कुंज गली में नाचे नन्द |

सुंदर भजन में वृंदावन की कुंज गलियों में श्रीकृष्णजी की लीलामय नृत्य लीला का मनमोहक चित्रण है। यह ऐसा है, जैसे कोई वृंदावन की गलियों में खोकर नंदकुमार की मस्ती में डूब गया हो। श्रीकृष्णजी का मोर मुकुट, वैजयंती माला, और कटि पर पीतांबर का सजना, साथ में मुरली की मधुर धुन, उनके अनुपम रूप को दर्शाता है, जैसे कोई अपने प्रिय को सबसे सुंदर साज में देखकर मुग्ध हो जाए।

वीणा, ताल, मृदंग, झांझ, और सितार की संगति में नूपुर और कंगन की झंकार उस उत्सव को जीवंत करती है, जैसे कोई गाँव में मेला देखकर झूम उठे। ग्वाल-बाल और ब्रज की नारियों का नाच, और राधारानी का सोलह श्रृंगार में सखियों संग नृत्य, उस प्रेममय माहौल को रंग देता है, जैसे कोई अपने प्रिय के साथ उत्सव में शामिल होकर हर चिंता भूल जाए।

वृंदावन की कुंज गलियों में नंदकुमार का नृत्य भक्तों के प्रेम और भक्ति को जागृत करता है। उनकी मधुर चाल, उनकी अलौकिक मोहकता, और उनकी बंसी की धुन से संपूर्ण ब्रजमंडल आनंद से सराबोर हो जाता है।

कृष्ण का नृत्य केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि प्रेम और भक्ति का सजीव प्रस्फुटन है। जब वे गोपियों के बीच नृत्य करते हैं, तब संपूर्ण वातावरण आनंद से भर जाता है। वृंदावन की रज भी धन्य हो जाती है, जहाँ भगवान स्वयं अपने प्रेममयी रूप में प्रकट होते हैं।

गोपियाँ उनकी प्रत्येक लीला में रम जाती हैं, उनके हर भाव में मधुरता और आकर्षण का अनुभव करती हैं। वृंदावन की गलियाँ उनके चरणों से पवित्र हो जाती हैं, और भक्ति का प्रवाह निरंतर बढ़ता रहता है। 

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