श्यामा श्याम सलौनी सूरत सिंगार बसन्ती
श्यामा श्याम सलौनी सूरत सिंगार बसन्ती है
श्यामा श्याम सलौनी सूरतश्यामा श्याम सलौनी सूरत का
सिंगार बसन्ती है
मोर मुकुट की लटक बसन्ती,
चंद्रकला की चटक बसन्ती,
मुख मुरली की मटक बसन्ती,
सिर पै पैंच श्रवण-कुंडल
छविदार बसंती है ||
श्यामा श्याम-------
माथे चन्दन लगा बसंती,
पट पीताम्बर कसा बसन्ती,
पहना बाजूबंद बसन्ती,
गुंजमाल गल सोहै,
फूलनहार बसन्ती है ||
श्यामा श्याम------
कनक कडूला हाथ बसन्ती,
चले चाल अलमस्त बसन्ती,
पहन रहे पोशाक बसन्ती,
रुनक-झुनक पग नूपुर की
झनकार बसन्ती है ||
श्यामा श्याम-------
संग ग्वाल की टोल बसन्ती,
बजे चंड्ग छप ढोल बसन्ती,
बोल रहे हैं बोल बसन्ती,
सब सखियन में राधेजी
सरदार बसन्ती हैं ||
श्यामा श्याम---------
Shyam Bhajans:- श्यामा श्याम सलोनी सूरत को श्रृंगार बसंती है.Shyama shyam saloni soorat ko shringar
सुंदर भजन में राधारानी और श्रीकृष्णजी के बसंती सिंगार और प्रेममय लीलाओं का रसभरा चित्रण है। यह ऐसा है, जैसे कोई वृंदावन की गलियों में उनके रूप और मस्ती को देखकर मुग्ध हो गया हो। श्यामा और श्याम का बसंती रंग में सजा रूप मन को हर लेता है, जैसे बसंत की फूलों भरी डालियाँ हर तरफ खुशी बिखेरती हैं।
मोर मुकुट, चंद्रकला, और मुरली की मटक में बसंती रंग की छटा उस अलौकिक सौंदर्य को दर्शाती है, जो श्रीकृष्णजी की हर अदा में झलकता है। माथे का चंदन, पीतांबर, बाजूबंद, और गले की गुंजमाला उनके सिंगार को और निखारती है, जैसे कोई अपने प्रिय को सबसे सुंदर सजावट से सजाए। यह बसंती रंग प्रेम और भक्ति का प्रतीक है, जो हर चीज को मधुर बनाता है।
श्रीकृष्णजी की अलमस्त चाल और पायल की रुनझुन उस मस्ती को जाहिर करती है, जो उनकी हर हरकत में बसी है। यह भाव है, जैसे कोई नाचते-गाते अपने प्रिय के साथ बसंत के रंग में डूब जाता हो। ग्वालों की टोली, ढोल-छंद की थाप, और राधारानी का सखियों में सरदार होना उस उत्सव को जीवंत करता है, जैसे कोई अपने दोस्तों के साथ मिलकर खुशी में झूम उठता हो।
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