महालक्ष्मी कवच जानिये अर्थ और महत्त्व

महालक्ष्मी कवच जानिये अर्थ और महत्त्व सरल हिंदी में

नारायण उवाच
सर्व सम्पत्प्रदस्यास्य कवचस्य प्रजापतिः।
ऋषिश्छन्दश्च बृहती देवी पद्मालया स्वयम्॥१॥
धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः।
पुण्यबीजं च महतां कवचं परमाद्भुतम्॥२॥
ॐ ह्रीं कमलवासिन्यै स्वाहा मे पातु मस्तकम्।
श्रीं मे पातु कपालं च लोचने श्रीं श्रियै नमः॥३॥
ॐ श्रीं श्रियै स्वाहेति च कर्णयुग्मं सदावतु।
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै स्वाहा मे पातु नासिकाम्॥४॥
ॐ श्रीं पद्मालयायै च स्वाहा दन्तं सदावतु।
ॐ श्रीं कृष्णप्रियायै च दन्तरन्ध्रं सदावतु॥५॥
ॐ श्रीं नारायणेशायै मम कण्ठं सदावतु।
ॐ श्रीं केशवकान्तायै मम स्कन्धं सदावतु॥६॥
ॐ श्रीं पद्मनिवासिन्यै स्वाहा नाभिं सदावतु।
ॐ ह्रीं श्रीं संसारमात्रे मम वक्षः सदावतु॥७॥
ॐ श्रीं श्रीं कृष्णकान्तायै स्वाहा पृष्ठं सदावतु।
ॐ ह्रीं श्रीं श्रियै स्वाहा मम हस्तौ सदावतु॥८॥
ॐ श्रीं निवासकान्तायै मम पादौ सदावतु।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रियै स्वाहा सर्वांगं मे सदावतु॥९॥
प्राच्यां पातु महालक्ष्मीराग्नेय्यां कमलालया।
पद्मा मां दक्षिणे पातु नैर्ऋत्यां श्रीहरिप्रिया॥१०॥
पद्मालया पश्चिमे मां वायव्यां पातु श्रीः स्वयम्।
उत्तरे कमला पातु ऐशान्यां सिन्धुकन्यका॥११॥
नारायणेशी पातूर्ध्वमधो विष्णुप्रियावतु।
संततं सर्वतः पातु विष्णुप्राणाधिका मम॥१२॥
इति ते कथितं वत्स सर्वमन्त्रौघविग्रहम्।
सर्वैश्वर्यप्रदं नाम कवचं परमाद्भुतम्॥१३॥
सुवर्णपर्वतं दत्त्वा मेरुतुल्यं द्विजातये।
यत् फलं लभते धर्मी कवचेन ततोऽधिकम्॥१४॥
गुरुमभ्यर्च्य विधिवत् कवचं धारयेत् तु यः।
कण्ठे वा दक्षिणे वाहौ स श्रीमान् प्रतिजन्मनि॥१५॥
अस्ति लक्ष्मीर्गृहे तस्य निश्चला शतपूरुषम्।
देवेन्द्रैश्चासुरेन्द्रैश्च सोऽत्रध्यो निश्चितं भवेत्॥१६॥
स सर्वपुण्यवान् धीमान् सर्वयज्ञेषु दीक्षितः।
स स्नातः सर्वतीर्थेषु यस्येदं कवचं गले॥१७॥
यस्मै कस्मै न दातव्यं लोभमोहभयैरपि।
गुरुभक्ताय शिष्याय शरणाय प्रकाशयेत्॥१८॥
इदं कवचमज्ञात्वा जपेल्लक्ष्मीं जगत्प्सूम्।
कोटिसंख्यं प्रजप्तोऽपि न मन्त्रः सोद्धिदायकः॥१९॥
 
 
श्री लक्ष्मी कवच एक पवित्र स्तोत्र है, जो देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए रचा गया है। इस कवच के माध्यम से साधक देवी लक्ष्मी से अपने शरीर और जीवन की रक्षा की प्रार्थना करता है, जिससे उसे धन, समृद्धि और सुख की प्राप्ति हो। कवच में विभिन्न अंगों और दिशाओं की रक्षा के लिए देवी के विभिन्न नामों का स्मरण किया गया है, जिससे साधक को जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता और ऐश्वर्य प्राप्त होता है। इसका नियमित पाठ करने से व्यक्ति के घर में स्थायी लक्ष्मी का वास होता है, और वह जीवन में सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त होकर सुखी और समृद्ध बनता है।
 
नारायण उवाच
भगवान नारायण ने कहा:

सर्व सम्पत्प्रदस्यास्य कवचस्य प्रजापतिः। ऋषिश्छन्दश्च बृहती देवी पद्मालया स्वयम्॥१॥
यह कवच सभी प्रकार की संपत्तियाँ प्रदान करने वाला है। इसके ऋषि प्रजापति हैं, छंद बृहती है, और देवी स्वयं पद्मालया (लक्ष्मी) हैं।

धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः। पुण्यबीजं च महतां कवचं परमाद्भुतम्॥२॥
यह कवच धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए उपयोगी है। यह पुण्य का बीज और महान व्यक्तियों के लिए परम अद्भुत कवच है।

ॐ ह्रीं कमलवासिन्यै स्वाहा मे पातु मस्तकम्। श्रीं मे पातु कपालं च लोचने श्रीं श्रियै नमः॥३॥
'ॐ ह्रीं कमलवासिन्यै स्वाहा' मेरे मस्तक की रक्षा करें। 'श्रीं' मेरे कपाल की रक्षा करें, और नेत्रों की रक्षा के लिए 'श्रीं श्रियै नमः'।

ॐ श्रीं श्रियै स्वाहेति च कर्णयुग्मं सदावतु। ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै स्वाहा मे पातु नासिकाम्॥४॥
'ॐ श्रीं श्रियै स्वाहा' मेरे दोनों कानों की सदा रक्षा करें। 'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै स्वाहा' मेरी नासिका की रक्षा करें।

ॐ श्रीं पद्मालयायै च स्वाहा दन्तं सदावतु। ॐ श्रीं कृष्णप्रियायै च दन्तरन्ध्रं सदावतु॥५॥
'ॐ श्रीं पद्मालयायै स्वाहा' मेरे दाँतों की सदा रक्षा करें। 'ॐ श्रीं कृष्णप्रियायै स्वाहा' मेरे दाँतों के बीच के स्थान की रक्षा करें।

ॐ श्रीं नारायणेशायै मम कण्ठं सदावतु। ॐ श्रीं केशवकान्तायै मम स्कन्धं सदावतु॥६॥
'ॐ श्रीं नारायणेशायै' मेरा कंठ सदा सुरक्षित रखें। 'ॐ श्रीं केशवकान्तायै' मेरे कंधों की रक्षा करें।

ॐ श्रीं पद्मनिवासिन्यै स्वाहा नाभिं सदावतु। ॐ ह्रीं श्रीं संसारमात्रे मम वक्षः सदावतु॥७॥
'ॐ श्रीं पद्मनिवासिन्यै स्वाहा' मेरी नाभि की सदा रक्षा करें। 'ॐ ह्रीं श्रीं संसारमात्रे' मेरा वक्षस्थल सुरक्षित रखें।

ॐ श्रीं श्रीं कृष्णकान्तायै स्वाहा पृष्ठं सदावतु। ॐ ह्रीं श्रीं श्रियै स्वाहा मम हस्तौ सदावतु॥८॥
'ॐ श्रीं श्रीं कृष्णकान्तायै स्वाहा' मेरी पीठ की सदा रक्षा करें। 'ॐ ह्रीं श्रीं श्रियै स्वाहा' मेरे हाथों की रक्षा करें।

ॐ श्रीं निवासकान्तायै मम पादौ सदावतु। ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रियै स्वाहा सर्वांगं मे सदावतु॥९॥
'ॐ श्रीं निवासकान्तायै' मेरे पैरों की सदा रक्षा करें। 'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रियै स्वाहा' मेरे सम्पूर्ण अंगों की रक्षा करें।

प्राच्यां पातु महालक्ष्मीराग्नेय्यां कमलालया। पद्मा मां दक्षिणे पातु नैरृत्यां श्रीहरिप्रिया॥१०॥
पूर्व दिशा में महालक्ष्मी मेरी रक्षा करें, आग्नेय दिशा में कमलालया (लक्ष्मी) रक्षा करें। दक्षिण दिशा में पद्मा मेरी रक्षा करें, नैरृत्य दिशा में श्रीहरिप्रिया रक्षा करें।

पद्मालया पश्चिमे मां वायव्यां पातु श्रीः स्वयम्। उत्तरे कमला पातु ऐशान्यां सिन्धुकन्यका॥११॥
पश्चिम दिशा में पद्मालया मेरी रक्षा करें, वायव्य दिशा में स्वयं श्री (लक्ष्मी) रक्षा करें। उत्तर दिशा में कमला मेरी रक्षा करें, ऐशान्य दिशा में सिन्धुकन्या (लक्ष्मी) रक्षा करें।
 
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