घर में रागी घर में वैरागी भजन

घर में रागी घर में वैरागी भजन

घर में रागी घर में वैरागी,
घर घर गावन वाला ओ,
कलयुग री आ छाया पड़ी है
कुन नुगरोने वर्जन वाला ओ जी।

गुरु मुख ग्यानी जगत में थोड़ा,
मन मुख मुंड कियोड़ा रे,
ग्यान गत री मत नही जाने,
ऐ लंबे बालों वाला ओ जी,
घर में रागी घर में वैरागि,
घर घर गावन वाला ओ।।

बाल राख ने मोड़ा चाले,
अरे पंच केश नही ध्याता है,
पांच तत्व री सार नही जाने,
नित निम् न्हावन वाला है ओ जी,
घर में रागी घर में वैरागि,
घर घर गावन वाला ओ।।

नावे धोवे तिलक लगावे,
अरे मंदिर जावन वाला ओ,
निज मन्दिर री खबर नही जाने,
गले जनोइरी माला है ओ जी,
घर में रागी घर में वैरागि,
घर घर गावन वाला ओ।।

अरे वेश पेर भगवान रिजावे,
घरे जोगियो रा वाना ओ,
नेती धोती री सार नही जाने,
पर बैठा पुरुष दीवाना है ओ जी
घर में रागी घर में वैरागि,
घर घर गावन वाला ओ।।

भुरनाथ अडवन्का जोगी,
सिद का जल वसवाला है,
गुरु कानजी सिमरत मिलिया,
अब फेरुस थोरी माला है ओ जी,
घर में रागी घर में वैरागि,
घर घर गावन वाला ओ।।

घर में रागी घर में वैरागी,
घर घर गावन वाला ओ,
कलयुग री आ छाया पड़ी है
कुन नुगरोने वर्जन वाला ओ जी।




Ghar Me Raagi Ghar Me Bairagi - Navratan Singh Rawal - Rajasthani Bhajan

Ghar Mein Raagee Ghar Mein Vairaagee,
Ghar Ghar Gaavan Vaala O,
Kalayug Ree Aa Chhaaya Padee Hai
Kun Nugarone Varjan Vaala O Jee..

कलयुग की छाया में साधक बाहरी आडंबरों में उलझा है, सच्चे ज्ञान से दूर। घर-घर में रागी-वैरागी गाते हैं, पर मन का मंदिर सूना। गुरु का सच्चा ज्ञान दुर्लभ, लोग लंबे बाल, जटाएँ रखते, पर पंच तत्व का सार न जानते। स्नान, तिलक, माला, मंदिर की रस्में निभाते, पर आत्मा का मंदिर अनदेखा। भगवा वस्त्र पहन, योगी बनने का ढोंग रचाते, पर नाभि और धोती का रहस्य न समझते। बाहरी भेष में भगवान को रिझाने की कोशिश, पर भीतर का दीवाना पुरुष अज्ञान में डूबा। सच्चा साधक, जैसे भूरनाथ और कानजी, गुरु की शरण में सिमरन कर सिद्धि पाता, थोड़ी माला से ही प्रभु को पा लेता। यह सत्य की पुकार है—बाहरी रस्में छोड़, आत्म-ज्ञान की खोज करो, क्योंकि सच्ची भक्ति मन के मंदिर में बसती है, जो साधक को अंधेरे से मुक्ति देती है।
 
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