ज्योत जगाई है माँ हमने भजन
ज्योत जगाई है माँ हमने भजन
है भजनों की रात,
मैया जी दौड़ी-दौड़ी आना,
मैया जी थोड़ी वैगी आना।।
नमो-नमो मातेश्वरी,
और नमो-नमो जगदंब,
भगत जनों के काज में,
मैया करती नहीं विलंब।।
ज्योत जगाई है माँ हमने,
है भजनों की रात,
मैया जी दौड़ी-दौड़ी आना,
मैया जी थोड़ी वैगी आना।।
हलवा मंगाया हमने,
चुनरी मंगाई,
चुनरी मंगाई हो मैया,
चुनरी मंगाई,
चौकी लगाई हमने,
मेंहदी गलाई,
मेंहदी गलाई हो मैया,
मेंहदी गलाई,
दर्शन दिखा दे ओ महारानी,
बिगड़ ना जाए बात,
मैया जी दौड़ी-दौड़ी आना,
मैया जी थोड़ी वैगी आना।।
राह निहारूँ तेरी, जल्दी से आना,
जल्दी से आना मैया,
जल्दी से आना,
आज न आई जो तुम,
हँसेगा ज़माना,
हँसेगा ज़माना मैया,
हँसेगा ज़माना,
याद में तेरी हो रही मैया,
नैनों से बरसात,
मैया जी दौड़ी-दौड़ी आना,
मैया जी थोड़ी वैगी आना।।
कोई नहीं है मुझको तेरा सहारा,
तेरा सहारा मैया,
तेरा सहारा,
संकट पड़ा है भारी,
तुमको पुकारा,
तुमको पुकारा मैया,
तुमको पुकारा,
सिंह सवारी कर जगदंबा,
सिर पर रख दो हाथ,
मैया जी दौड़ी-दौड़ी आना,
मैया जी थोड़ी वैगी आना।।
कुछ भी ना माँगू तुमसे,
दर्शन दिखा दो,
दर्शन दिखा दो मैया,
दर्शन दिखा दो,
सोया है भाग हमारा,
उसको जगा दो,
उसको जगा दो मैया,
उसको जगा दो,
प्रेमी-पागल बस यही माँगे,
कभी ना छूटे साथ,
मैया जी दौड़ी-दौड़ी आना,
मैया जी थोड़ी वैगी आना।।
(Refrain)
ज्योत जगाई है माँ हमने,
है भजनों की रात,
मैया जी दौड़ी-दौड़ी आना,
मैया जी थोड़ी वैगी आना।।
ज्योत जगाई है माँ हमने - Maiya Ji Dodi Dodi Aana ft. Chhappan Indori , Deepika Rana & Krishna Pawar
माँ की भक्ति का यह रूप पुकार की तीव्रता से भरा है—एक ऐसी पुकार जो प्रेम, श्रद्धा और विश्वास से उठती है। जब ज्योत जलती है, तब यह केवल लौ नहीं, बल्कि एक आस्था का संदेश होता है। यह प्रतीक है उस अनवरत विश्वास का, जो भक्त को माँ की कृपा के मार्ग पर अडिग बनाए रखता है।
भक्त के हृदय में एक प्रबल आकांक्षा है—माँ के शीघ्र आगमन की। इस भाव में वह आतुरता स्पष्ट रूप से झलकती है, जैसे कोई अपने प्रिय से मिलने को व्याकुल हो। माँ का आगमन केवल दर्शन तक सीमित नहीं, बल्कि यह उसके स्नेह, उसकी शरण, और उसके आशीर्वाद की अनुभूति है। यही वह दिव्यता है, जो संकट में पड़े हृदय को संबल प्रदान करती है।
माँ के लिए किए गए समर्पण में हलवा, चुनरी, चौकी, और मेंहदी केवल वस्तुएँ नहीं, बल्कि प्रेम की अभिव्यक्ति हैं। यह बताता है कि भक्ति केवल विचारों का नहीं, बल्कि समर्पण का भी विषय है। माँ की कृपा मांगने वाला केवल उनके दर्शन की चाह रखता है, सांसारिक वस्तुएँ उसे नहीं लुभातीं। यह भाव ही उसे माँ की गोद में स्थिर बनाता है, जहाँ सब दुख विलीन हो जाते हैं और केवल आनंद ही शेष रहता है।
माँ का नाम लेने में जो आनंद है, वही आत्मा का सच्चा आह्लाद है। जब संकटों में भी माँ को पुकारने की शक्ति बनी रहती है, तब ही भक्ति का सत्य रूप प्रकट होता है। माँ का आशीर्वाद कभी विलंब नहीं करता; वह अपने स्नेह से हर बाधा को समाप्त कर देती हैं, केवल सच्चे और निश्छल प्रेम की जरूरत होती है। यही प्रेम ही माँ के चरणों की स्थायी संगति बनाता है।