वैष्णों देवी की गुफा आरती
श्री वैष्णों देवी की गुफा में होने वाली आरती
हे मात मेरी, हे मात मेर,कैसी यह देर लगाई है दुर्गे | हे ....
भवसागर में गिरा पड़ा हूँ,
काम आदि गृह में घिरा पड़ा हूँ |
मोह आदि जाल में जकड़ा पड़ा हूँ | हे ....
न मुझ में बल है न मुझ में विद्या,
न मुझ में भक्ति न मुझमें शक्ति |
शरण तुम्हारी गिरा पड़ा हूँ | हे ....
न कोई मेरा कुटुम्ब साथी,
ना ही मेरा शारीर साथी |
आप ही उबारो पकड़ के बाहीं | हे ....
चरण कमल की नौका बनाकर,
मैं पार हुंगा ख़ुशी मनाकर |
यमदूतों को मार भगाकर | हे ....
सदा ही तेरे गुणों को गाऊँ,
सदा ही तेरे स्वरूप को ध्याऊँ |
नित प्रति तेरे गुणों को गाऊँ | हे ....
न मैं किसी का न कोई मेरा,
छाया है चारों तरफ अन्धेरा |
पकड़ के ज्योति दिखा दो रास्ता | हे ....
शरण पड़े है हम तुम्हारी,
करो यह नैया पार हमारी |
कैसी यह देर लगाई है दुर्गे | हे ....
जानिए माता वैष्णो देवी के बारे में : माता वैष्णो देवी जम्मू और कश्मीर में कटरा में १७०० मीटर की उचाई पर वैष्णो देवी पर्वत पर स्थापित है। मंदिर एक गुफा में स्थापित है। मान्यता है की माता ने इस गुफा में नो महीने बिताये थे जैसे कोई बच्चा अपनी माँ के गर्भ में समय व्यतीत करता है। सभी भक्तों को इस गुफा में जाने का सौभाग्य प्राप्त नहीं होता है,
यदि भक्तों के संख्या कम तो इस प्राचीन गुफा को श्रद्धालुओं के लिए जाता है।
मंदिर के निर्माण के बारे में मान्यता है की इस मंदिर का निर्माण पंडित श्रीधर के द्वारा किया गया था। श्रीधर की भक्ति से प्रशन्न होकर माता रानी ने दर्शन दिए थे। माता जी ने श्रीधर को एक छोटी बच्ची के रूप में दर्शन दिए थे।
मंदिर में प्रातः और सांय काल में माताजी की पूजा और प्रसिद्ध आरती होती है। आरती से पहले माता जी को शहद, पानी और दूध से स्नान करवाया जाता है। माताजी के मंदिर के पास ही भैरव जी का प्रसिद्ध मंदिर भी है। माता जी को सच्चे मन से याद करने वालो के सभी कष्ट माता रानी दूर करती है।
(वैष्णो देवी धाम की गुफा में होने वाली आरती का दुर्लभ दर्शय )
सुंदर भजन में वैष्णो देवी के प्रति भक्त का हृदय समर्पण और करुण पुकार से भरा है। भवसागर में डूबा मन काम, मोह और जाल में जकड़ा है, लेकिन माता की शरण ही उसका एकमात्र सहारा है। जैसे अंधेरे में दीपक की लौ रास्ता दिखाती है, वैसे ही माता की कृपा भक्त को बल, भक्ति और विद्या प्रदान करती है।
न कुटुंब, न शरीर, न कोई साथी—जब सब छूट जाए, तब माता का हाथ ही थामता है। उनके चरण-कमल की नौका में सवार होकर भक्त यम के भय से मुक्त हो, सुखी मन से पार उतरता है। यह उदगार है कि माता के गुणों का गान और उनके स्वरूप का ध्यान ही जीवन को प्रकाशित करता है। जो उनकी शरण में आता है, उसकी नैया पार हो जाती है, और आत्मा को शांति व परम आनंद की प्राप्ति होती है।
न कुटुंब, न शरीर, न कोई साथी—जब सब छूट जाए, तब माता का हाथ ही थामता है। उनके चरण-कमल की नौका में सवार होकर भक्त यम के भय से मुक्त हो, सुखी मन से पार उतरता है। यह उदगार है कि माता के गुणों का गान और उनके स्वरूप का ध्यान ही जीवन को प्रकाशित करता है। जो उनकी शरण में आता है, उसकी नैया पार हो जाती है, और आत्मा को शांति व परम आनंद की प्राप्ति होती है।