चिन्तपूर्णी देवी आरती भजन
चिन्तपूर्णी देवी आरती भजन
जन को तारो भोली माँ |
काली दा पुत्र पवन दा घोडा,
सिंह पर भई असवार, भोली माँ || १ ||
एक हाथ खड़ग दूजे में खांडा,
तीजे त्रिशूलसम्भालो, भोली माँ || २ ||
चौथे हथ चक्कर गदा पांचवे,
छठे मुण्डों दी माल भोली माँ || ३ ||
सातवें से रुण्ड-मुण्ड बिदारे,
आठवें से असुर संहारे, भोली माँ || ४ ||
चम्पे का बाग लगा अति सुन्दर,
बैठी दीवान लगाय, भोली माँ || ५ ||
हरि हर ब्रह्मा तेरे भवन विराजे,
लाल चंदोया बैठी तान, भोली माँ || ६ ||
औखी घाटी विकटा पैंडा,
तले बहे दरिया, भोली माँ || ७ ||
सुमर चरन ध्यानू जस गावे,
भक्तां दी पज निभाओ, भोली माँ || ८ ||
सुन्दर भजन में माँ चिन्तपूर्णी की अपरम्पार कृपा और उनकी दिव्य शक्ति का उदगार है। माँ भक्तों के समस्त कष्टों को हरने वाली हैं, जिनकी छवि शक्ति और करुणा का अद्भुत मिश्रण है। वे सिंह पर सवार होकर संकटों को दूर करने वाली हैं, उनकी कृपा से जीवन निर्भयता और उत्साह से परिपूर्ण हो जाता है।
माँ की महिमा में उनकी आयुधों की शक्ति का उल्लेख है—खड़ग, खांडा और त्रिशूल उनके न्याय और धर्म की रक्षा का प्रतीक हैं। गदा और चक्र उनके अलौकिक तेज को दर्शाते हैं, और उनकी मुण्डमाला उनकी विजय का प्रमाण है। उनका स्वरूप आत्मा को सशक्त बनाता है और भक्त को साहस प्रदान करता है।
माँ चिन्तपूर्णी की आराधना से समस्त बाधाएँ समाप्त होती हैं। कठिन मार्ग भी उनकी कृपा से सहज बन जाता है। उनके दरबार की दिव्यता भक्तों को शांति और आनंद प्रदान करती है। उनके चरणों में समर्पण से जीवन का संपूर्ण भार हल्का हो जाता है और आत्मा परम शांति का अनुभव करती है।
माँ चिन्तपूर्णी को सच्चे भाव से स्मरण करने से जीवन के समस्त दुःख दूर हो जाते हैं। उनके ध्यान से हृदय में भक्ति और श्रद्धा का संचार होता है, जिससे मन में संतोष और शुद्धता बनी रहती है। माँ की कृपा से हर भक्त को उनकी स्नेहिल छाया में शरण मिलती है, और जीवन में मंगलमय परिवर्तन आता है।
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Author - Saroj Jangir
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