जो देते लहू वतन को सोंग

जो देते लहू वतन को सोंग

जो देते लहू वतन को,
जो महकाते उपवन को,
उन्हें शत शत परनाम मेरे देश का,
उनको सो सो सलाम मेरे देश का,

धरती को स्वर्ग बनाने माटी का कर्ज चुकाने,
जो कदम बढ़ाते है रक्शा का भोज उठाने,
जो मर कर भी जी ते है जो विश हर दम पीते है,
उन्हें शत शत परनाम मेरे देश का,
उनको सो सो सलाम मेरे देश का,

जो धीर वीर व्रत धरी वो सच्चे देश पुजारी,
इतहास वोही रचते है जिनका जीवन उपकारी,
जो दिल में रखे लग्न को वो पूरा करे सपन को,
उन्हें शत शत परनाम मेरे देश का,
उनको सो सो सलाम मेरे देश का


ये वीर धरती को स्वर्ग बनाने और माटी के कर्ज को चुकाने के लिए अपने कदम बढ़ाते हैं। यह उद्गार मन को यह सिखाता है कि उनका बलिदान केवल मृत्यु नहीं, बल्कि अमर जीवन है, जो देश के उपवनों को महकाता है। जैसे कोई विद्यार्थी अपने गुरु के उपकार को जीवन भर याद रखता है, वैसे ही इन शहीदों का ऋण हर भारतीय के हृदय में बस्ता है।

जो मरकर भी जीते हैं और विष पीकर भी देश की रक्षा करते हैं, उनकी वीरता और समर्पण इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में अंकित है। यह भाव उस सत्य को उजागर करता है कि सच्चा पुजारी वही है, जो देश के लिए अपने व्रत और संकल्प को अडिग रखता है। जैसे कोई संत अपने जीवन को लोक कल्याण के लिए समर्पित करता है, वैसे ही ये वीर अपने सपनों को देश के लिए साकार करते हैं।
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