काम क्रोध मद लोभ और माया भजन

काम क्रोध मद लोभ और माया भजन

काम, क्रोध, मद, लोभ और माया,
पहरेदार बिठाया.
इन सबसे जो बच कर आया
उसने श्याम को पाया,
बोलो है ना बोलो है ना,
काम, क्रोध, मद, लोभ और माया,
पहरेदार बिठाया.

इन पांचो के पीछे देखो भाग रहा जग सारा,
छोड़ दे चिंता इन पांचो की बन जा श्याम का प्यारा,
जिस ने इन पांचो को छोड़ा उसका साथ निभाया,
बोलो है ना बोलो है ना,
काम, क्रोध, मद, लोभ और माया,
पहरेदार बिठाया.

माया नगरी ये दुनिया है,
थोड़ा दूर भगाओ,
नरसी मीरा कर्मा जैसे मन में भाव जगो,
जिनके मन में भाव है ऐसे उनके घर में आया,
बोलो है ना बोलो है ना,
काम, क्रोध, मद, लोभ और माया,
पहरेदार बिठाया.

मांग ना हो तो श्याम प्रभु से ऐसी शक्ति मानगो,
हारे हुए के साथी बने हम ऐसी भगति मानगो,
श्याम कहे जिस जिस ने किया उस में श्याम समाया,
बोलो है ना बोलो है ना,
काम, क्रोध, मद, लोभ और माया,
पहरेदार बिठाया.



सुंदर भजन में आध्यात्मिक चेतना और सांसारिक मायाजाल से मुक्ति की अनुभूति प्रदर्शित की गई है। यह भाव सिखाता है कि काम, क्रोध, मद, लोभ और माया—ये पाँच तत्व मनुष्य को ईश्वर से दूर करने का कार्य करते हैं, किंतु जो इनसे ऊपर उठ जाता है, वही श्रीकृष्णजी की कृपा का वास्तविक अधिकारी बनता है।

यह अनुभूति बताती है कि संसार का अधिकांश भाग इन पांचों के प्रभाव में बहता रहता है, जहाँ मोह, अहंकार और लालसा मनुष्य को भक्ति और सच्चे प्रेम से दूर ले जाते हैं। किंतु जो व्यक्ति इन बंधनों को त्यागकर श्रीकृष्णजी के प्रेम में रम जाता है, वही उनके दिव्य सान्निध्य का अनुभव करता है।

श्रद्धा की इस गहराई में नरसी, मीराबाई और कर्मा जैसे भक्तों का स्मरण आता है, जिन्होंने सांसारिक सीमाओं को छोड़कर अपनी भक्ति को सर्वोच्च स्थान दिया। यही भाव बताता है कि जब मन शुद्ध होता है, तब ईश्वर स्वयं भक्त के हृदय में स्थान ग्रहण करते हैं।
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