सप्तद्वीपेश्वरो राजा सुचन्द्रोऽस्य प्रसादत:। कवचस्य प्रसादेन मान्धाता पृथिवीपति:॥ प्रचेता लोमशश्चैव यत: सिद्धो बभूव ह। यतो हि योगिनां श्रेष्ठ: सौभरि: पिप्पलायन:॥ यदि स्यात् सिद्धकवच: सर्वसिद्धीश्वरो भवेत्। महादानानि सर्वाणि तपांसि च व्रतानि च॥ निश्चितं कवचस्यास्य कलां नार्हन्ति षोडशीम्॥ इदं कवचमज्ञात्वा भजेत् कलीं जगत्प्रसूम्। शतलक्षप्रप्तोऽपि न मन्त्र: सिद्धिदायक:॥
दशाक्षरी विद्या और काली कवच का महत्व और लाभ दशाक्षरी विद्या और काली कवच का वर्णन ब्रह्मवैवर्त पुराण के गणपति खंड में मिलता है। यह अद्भुत और दुर्लभ कवच भगवान शिव, नारायण, और दुर्वासा ऋषि द्वारा प्रदान किया गया था। इसकी शक्ति और प्रभाव अद्वितीय मानी जाती है। यह न केवल भौतिक सुख-सुविधाओं को प्रदान करता है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति और सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करने में सहायक है। काली कवच त्रिपुर वध के समय भगवान नारायण द्वारा शिवजी को प्रदान किया गया था। इस कवच को पढ़ने और अपनाने से व्यक्ति अपने जीवन में सभी प्रकार की परेशानियों से मुक्ति पा सकता है। यह सभी मंत्रों का सार है और इसे गोपनीय और अद्वितीय माना गया है।
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