कौन सुनेगा किसको सुनाऊं
कौन सुनेगा किसको सुनाऊं
कौन सुनेगा किसको सुनाऊं,किसलिये चुप बैठे हो,
छोड़ तुझे मैं किस दर जाऊँ,
किसलिए चुप बैठे हो।
मेरी हालत देख जरा तू,
आँख उठा कर के बाबा,
मैं तो तेरी शरण पड़ा हूँ,
क्यों तू मुझको बिसराता,
मेरी खता क्या, इतना बता दो,
किसलिये चुप बैठे हो,
छोड़ तुझे मैं किस दर जाऊँ,
किसलिए चुप बैठे हो।
क्या मैं इतना जान लूँ,
मुझको समझा तूने बेगाना,
वरना दिल के घाव तुझे,
क्या पड़ते बाबा दिखलाना,
दर्द बड़े है अब तो दवा दो,
किसलिये चुप बैठे हो,
छोड़ तुझे मैं किस दर जाऊँ,
किसलिए चुप बैठे हो।
दुःख में कोई साथ ना देता,
कैसे तुझको समझाऊं
हर्ष तेरे बिन कौन समझेगा,
किसको जा कर बतलाऊं,
अपने भक्त से कुछ तो बोलो,
किसलिये चुप बैठे हो,
छोड़ तुझे मैं किस दर जाऊँ,
किसलिए चुप बैठे हो।
Kaun Sunega Kisko Sunaye By Ravi Beriwal
सुंदर भजन में एक भक्त के मन की गहरी व्यथा और श्रीकृष्णजी के प्रति अटूट श्रद्धा का मार्मिक चित्रण है। यह उस मन की पुकार है, जो दुखों से घिरा हुआ प्रभु के सामने अपनी पीड़ा रखता है, उनकी चुप्पी से व्याकुल होकर उनसे जवाब माँगता है। यह भाव उस बेचैनी को दर्शाता है, जो तब उभरती है जब मनुष्य अपने दुखों में अकेला महसूस करता है और प्रभु की शरण में जाता है, यह उम्मीद लिए कि वे उसका साथ देंगे।
भक्त का मन अपनी हालत को प्रभु के सामने रखता है, जैसे कोई अपने सबसे करीबी से दिल की बात कहता है। यह वह विश्वास है, जो यह मानता है कि श्रीकृष्णजी उसकी हर पुकार सुनते हैं, भले ही उनकी चुप्पी मन को छलनी कर दे। जैसे कोई विद्यार्थी अपने गुरु से सवाल पूछता है और जवाब की आस में बेचैन रहता है, वैसे ही यहाँ भक्त अपनी गलती जानने को आतुर है, ताकि वह प्रभु की कृपा फिर से पा सके।
दिल के घावों को दिखाने और दवा माँगने का भाव उस गहरे विश्वास को उजागर करता है, जो यह मानता है कि केवल प्रभु ही हर दर्द का इलाज हैं। यह वह प्रेम है, जो मीराबाई की तरह प्रभु को अपना सब कुछ मानता है, और उनकी चुप्पी को भी एक गहरे संदेश की तरह देखता है। दुख में साथ न मिलने की बात उस सच्चाई को सामने लाती है, जो जीवन की कठिनाइयों में अक्सर अनुभव होती है, जब केवल प्रभु ही आखिरी सहारा नजर आते हैं।