मेरे श्याम पिया दिल तुझको भजन

मेरे श्याम पिया दिल तुझको भजन

मेरे श्याम पिया दिल तुझको दिया,
तू है मेरा पिया तुझ बिन लागे न जिया,
तुझे देखु न जब तक आँखों से,
नहीं लगता दिल मेरा,
नहीं लगता दिल मेरा,
नहीं लगता दिल मेरा,
नहीं लगता दिल मेरा।

रो रो कर मैं रह जाता हूँ,
किसी से कुछ न कह पाता हूँ,
मन ही मन में घबराता हूँ,
साथ तुझे न जब पाता हूँ,
मैं देखु तुझको ख़यालों में,
तेरा रस्ता निहारु राहो में,
आजा तू एक बार श्याम पिया,
नहीं लगता दिल मेरा,
नहीं लगता दिल मेरा,
नहीं लगता दिल मेरा,
नहीं लगता दिल मेरा।

खाटू में अपने मुझको बुला ले,
चरणों में अपने मुझको लगा ले,
दर्शन मुझको अपना करा दे,
दास मुझे तू अपना बना ले,
रम जाऊ मैं तेरी भक्ति में,
मुझको तू ऐसी शक्ति दे,
मुझे अपना बना ले श्याम पिया,
नहीं लगता दिल मेरा,
नहीं लगता दिल मेरा,
नहीं लगता दिल मेरा,
नहीं लगता दिल मेरा।

जिस जिस ने तेरा नाम लिया है,
तूने उसको थाम लिया है,
तूने मुझको खाटू भुलाया,
साथ है तूने मेरा निभाया,
तूने सुभाष सुमन को तारा है तू बाबा श्याम हमारा है,
हमे भूल न जाना श्याम पिया,
नहीं लगता दिल मेरा,
नहीं लगता दिल मेरा,
नहीं लगता दिल मेरा,
नहीं लगता दिल मेरा।

मेरे श्याम पिया दिल तुझको दिया,
तू है मेरा पिया तुझ बिन लागे न जिया,
तुझे देखु न जब तक आँखों से,
नहीं लगता दिल मेरा,
नहीं लगता दिल मेरा,
नहीं लगता दिल मेरा,
नहीं लगता दिल मेरा। 


इस भजन में श्रीश्यामजी के प्रति अटूट प्रेम, श्रद्धा और गहरे आत्मिक लगाव का भाव प्रकट किया गया है। भक्त का मन उनकी अनुपस्थिति में व्याकुल हो रहा है, और वह अपने प्रिय सांवरे से मिलने की प्रबल अभिलाषा व्यक्त करता है। यह भक्ति की वह अवस्था है जहाँ भक्त के हृदय में केवल श्रीश्यामजी का प्रेम ही स्पंदित होता है।

श्यामजी के दर्शन के लिए भक्त की तड़प इस भजन की आत्मा है। जब भक्त उनकी अनुपस्थिति में रोता है, तो यह केवल एक भावनात्मक प्रकट नहीं, बल्कि यह प्रेम की पराकाष्ठा है जहाँ भक्त अपने आराध्य के बिना स्वयं को अधूरा महसूस करता है। श्रीश्यामजी के श्रीचरणों में स्थान पाने की इच्छा और उनकी कृपा की याचना से यह भजन भक्ति के मधुरतम स्वरूप को प्रकट करता है।

भजन का भाव यह दर्शाता है कि श्रीश्यामजी केवल संकटों को हरने वाले देवता नहीं, बल्कि वे प्रेम और भक्ति का सर्वोच्च आलंबन भी हैं। जब कोई सच्चे मन से उनकी शरण में आता है, तब वह संसार की समस्त मायाओं से मुक्त होकर उनके प्रेम में रम जाता है। उनका आशीर्वाद भक्त की आत्मा को दिव्यता और माधुर्य से भर देता है।

श्रीश्यामजी की कृपा से ही भक्त को वास्तविक संतोष और आनंद प्राप्त होता है। जब कोई श्रद्धा और प्रेम से उनकी उपासना करता है, तब वह उनके आशीर्वाद से आत्मिक शांति प्राप्त करता है। यही इस भजन का दिव्य संदेश है—श्रद्धा, प्रेम और भक्ति के माध्यम से श्रीश्यामजी की कृपा को प्राप्त करना और उनके नाम के सुमिरन से आत्मा को अनंत आनंद और शांति से भर देना। यही भक्ति का सजीव स्वरूप है।

Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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