है प्रेम जहां की रीत सदा भजन
है प्रेम जहां की रीत सदा भजन
है प्रेम जहां की रीत सदा,में गीत वहां के गाता हूं,
खाटू में आता जाता हूं,
और बाबा के गुण गाता हूं,
श्री श्याम श्री श्याम,
श्री श्याम श्री श्याम,
जय श्री श्याम
मेरे श्याम प्रभु का भक्त वही,
जो हर ग्यारस खाटू जाता है,
जीवन को संवारा बाबा ने,
जो प्रेमी श्याम गुण गाता है,
हो जिसे जान चुकी सारी दुनिया,
मैं मंत्र वही दोहराता हूं,
खाटू में......
जब दुख के बादल मंडराते
तो मेरा श्याम दौड़ा चला आता है
मेरे श्याम की शरण में जो आता
वो मन वांछित फल पाता है
इतने पावन हैं श्याम मेरे,
मैं नित नित शीश झुकाता हूं
खाटू में......
जो हार के खाटू जाता है
मेरा श्याम उसे अपनाता है
जो प्रेमी प्रेम बढ़ाता है
मेरे श्याम के मन को भाता है
हो मेरा श्याम हमेशा साथ मेरे,
यही सोच के बीजू इतराता हूं
खाटू में.........
यह सुन्दर भजन समर्पण, श्रद्धा और प्रेम की उच्चतम अनुभूति का उदगार है। जहां प्रेम की रीत सदा प्रवाहित होती है, वहां भक्ति का स्वर सहज ही गूंज उठता है। इस भाव में वह अनुभव समाहित है, जहां मनुष्य अपने जीवन की समस्त विघ्न-बाधाओं को त्यागकर परम आश्रय में प्रवेश करता है।
खाटू के दिव्य आंगन में हर ग्यारस पर जाने वाला, अपने जीवन को सच्चे अर्थों में सँवारने का मार्ग प्राप्त करता है। यह यात्रा केवल शारीरिक नहीं, आत्मिक होती है, जहां भक्ति की अनुभूति हर क्षण प्रबल होती जाती है। श्रीश्यामजी का गुणगान करने वाला वास्तव में प्रेम का सच्चा स्वरूप जीता है, क्योंकि प्रेम ही है जो मनुष्य को देवत्व की ओर ले जाता है।
जब पीड़ा और निराशा के बादल घिरते हैं, तब यह दिव्य स्वरूप संबल बनकर आता है। शरण में आने वाले को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है—यह केवल बाहरी उपलब्धि नहीं, बल्कि अंतःकरण की पूर्णता है। श्रीश्यामजी के चरणों में शीश झुकाने का भाव आत्मसमर्पण की पराकाष्ठा है, जहां अहंकार विसर्जित होकर भक्ति का निर्मल प्रवाह आरंभ होता है।
जो हारा हुआ खाटू के द्वार पर आता है, वह अपने हृदय के रिक्त स्थान को प्रेम से भरने का अवसर पाता है। प्रेम का विस्तार मनुष्य को आत्मिक ऊंचाई तक पहुंचाने वाला है—वही प्रेम जो जीवन को आनंदमय और दिव्य बनाता है। श्रीश्यामजी का साथ केवल भौतिक नहीं, यह उस अनुभव का प्रतीक है जहां विश्वास की शक्ति से व्यक्ति स्वयं को पुनः सशक्त करता है।
यह दिव्य भाव केवल शब्दों में नहीं, जीवन की दिशा में उतरने योग्य है—जहां प्रेम, श्रद्धा और समर्पण एक अनमोल प्रकाश बनकर साधक का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
खाटू के दिव्य आंगन में हर ग्यारस पर जाने वाला, अपने जीवन को सच्चे अर्थों में सँवारने का मार्ग प्राप्त करता है। यह यात्रा केवल शारीरिक नहीं, आत्मिक होती है, जहां भक्ति की अनुभूति हर क्षण प्रबल होती जाती है। श्रीश्यामजी का गुणगान करने वाला वास्तव में प्रेम का सच्चा स्वरूप जीता है, क्योंकि प्रेम ही है जो मनुष्य को देवत्व की ओर ले जाता है।
जब पीड़ा और निराशा के बादल घिरते हैं, तब यह दिव्य स्वरूप संबल बनकर आता है। शरण में आने वाले को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है—यह केवल बाहरी उपलब्धि नहीं, बल्कि अंतःकरण की पूर्णता है। श्रीश्यामजी के चरणों में शीश झुकाने का भाव आत्मसमर्पण की पराकाष्ठा है, जहां अहंकार विसर्जित होकर भक्ति का निर्मल प्रवाह आरंभ होता है।
जो हारा हुआ खाटू के द्वार पर आता है, वह अपने हृदय के रिक्त स्थान को प्रेम से भरने का अवसर पाता है। प्रेम का विस्तार मनुष्य को आत्मिक ऊंचाई तक पहुंचाने वाला है—वही प्रेम जो जीवन को आनंदमय और दिव्य बनाता है। श्रीश्यामजी का साथ केवल भौतिक नहीं, यह उस अनुभव का प्रतीक है जहां विश्वास की शक्ति से व्यक्ति स्वयं को पुनः सशक्त करता है।
यह दिव्य भाव केवल शब्दों में नहीं, जीवन की दिशा में उतरने योग्य है—जहां प्रेम, श्रद्धा और समर्पण एक अनमोल प्रकाश बनकर साधक का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
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Author - Saroj Jangir
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