बसों हमारे मन मंदिर में सांवरियां सरकार

बसों हमारे मन मंदिर में सांवरियां सरकार लिरिक्स

बसो हमारे मन मंदिर में सांवरिया सरकार
प्रभु मुझे ऐसा वर दो
थाम लो मेरी बाह मुरारी आन खड़ी तेरे द्वार
प्रभु मुझे ऐसा वर दो
आप संभालो चाबी अब तो हमारे घर द्वार की
हमको बनालो दासी खाटू के दरबार की
हर पल हो तेरा ही सुमिरन सुबह ना देखूं शाम
प्रभु मुझे ऐसा वर दो.........
फंद छुड़ा दो मेरा लोभ मोह अभिमान से
धैर्य हमें दो इतना भटकु कभी ना श्याम नाम से
सहन करूं मैं जब तक तन में रहे हमारी जान
प्रभु मुझे ऐसा वर दो.............
याद रहे ना हमको कोई सिवाय खाटू धाम के
आज यहीं से मांगो मोरबी मैया तेरे लाल से
रोम रोम से निकले मेरे सांवरिया का नाम
प्रभु मुझे ऐसा वर दो..........
बसो हमारे मन मंदिर में.........
 
बसों हमारे मन मंदिर में,
सांवरियां सरकार,
प्रभु मुझे ऐसा वर दो,
थाम लो मेरी बांह मुरारी,
आन खड़ी तेरे द्वार प्रभु,
मुझे ऐसा वर दो,
बसो हमारे मन मंदिर में,
सांवरियां सरकार,
प्रभु मुझे ऐसा वर दो।

आप सम्भालो चाभी हमारे घरबार की,
हम को बना लो दासी खाटू के दरबार की,
हर पल हो तेरा ही सुमिरन,
सुबह न देखु शाम प्रभु मुझे ऐसा वर दो,
बसो हमारे मन मंदिर में,
सांवरियां सरकार,
प्रभु मुझे ऐसा वर दो।

मन छुड़ा दो मेरा लोभ मोह,
अभिमान से,
धैर्य हमे दो इतना,
भटकु कभी न श्याम नाम से,
सहन करूँ मैं जब तक तन में रहे,
हमारी जान प्रभु मुझे ऐसा वर दो,
बसो हमारे मन मंदिर में,
सांवरियां सरकार,
प्रभु मुझे ऐसा वर दो।

याद रहे न हमको कोई,
सिवाय खाटू धाम के,
आज यहीं से मांगो 
मोरबी मैया तेरे लाल से
 रोम रोम निकले मेरे,
सांवरियां का नाम,
प्रभु मुझे ऐसा वर दो,
बसो हमारे मन मंदिर में,
सांवरियां सरकार,
प्रभु मुझे ऐसा वर दो। 


सुन्दर भजन में श्रीश्यामजी के प्रति अनन्य प्रेम, श्रद्धा और आत्मसमर्पण का भाव प्रकट किया गया है। भक्त अपने हृदय का संपूर्ण भाव उनके श्रीचरणों में अर्पित करता है, क्योंकि वह जानता है कि उनकी कृपा से ही जीवन में समस्त कष्ट समाप्त होते हैं और आत्मा को परम आनंद प्राप्त होता है।

भक्ति का यह भाव न केवल बाह्य उपासना है, बल्कि यह आत्मा की गहन पुकार है। भक्त अपने मन-मंदिर में श्रीश्यामजी को विराजमान करने की प्रार्थना करता है, क्योंकि वह उनके सान्निध्य में ही सच्ची शांति और संतोष का अनुभव करता है। जब श्रीश्यामजी कृपा करके भक्त के हृदय में बस जाते हैं, तब हर क्षण उनका स्मरण जीवन को दिव्यता से भर देता है।

इस भजन का संदेश यही है कि सच्ची भक्ति में न तो लोभ होता है, न अभिमान—यह केवल समर्पण और प्रेम का अद्भुत संगम है। जब भक्त स्वयं को पूर्ण रूप से श्यामजी के श्रीचरणों में अर्पित करता है, तब वह सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर सच्चे आनंद की अनुभूति करता है। श्रद्धा और प्रेम के इस भाव में आत्मा की वास्तविक शांति निहित है।

श्रीश्यामजी की कृपा से भक्त का जीवन मंगलमय हो जाता है। जब वह सच्चे मन से उनकी आराधना करता है, तब उसकी समस्त इच्छाएँ पूर्ण होती हैं और वह आत्मिक संतुलन प्राप्त करता है। यही इस भजन का दिव्य सार है—श्रद्धा और प्रेम से श्रीश्यामजी की कृपा को प्राप्त करना और उनके नाम के सुमिरन से आत्मा को अनंत आनंद और शांति की अनुभूति कराना। यही भक्ति का सच्चा स्वरूप है, जो भक्त को परमात्मा से जोड़ता है।

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