किसी भी बहाने आजा रे सांवरिया भजन
किसी भी बहाने आजा रे सांवरिया भजन
आजा आजा रे सांवरिया,आजा आजा रे कन्हैया,
आजा मोरे अंगना,
प्यारी बांसुरी बजा जा,
प्यारी बांसुरी बजा जा,
आजा मोरे अंगना,
आजा आजा रे सांवरिया,
आजा मोरे अंगना।।
अंगना में आओगे तो,
सेज सजाऊंगी,
कदमो में तेरे मैं तो,
पलके बिछाऊँगी,
तन मन में समा जा,
आजा मोरे अंगना,
आजा आजा रे सांवरिया,
आजा मोरे अंगना।।
तेरे बिना जग में,
कोई ना सुहावे,
दिल है बेचैन मुझे,
कुछ नहीं भावे,
मेरे मन में समा जा,
आजा मोरे अंगना,
आजा आजा रे सांवरिया,
आजा मोरे अंगना।।
वृन्दावन यमुना का किनारा,
पागल खाना है अंगना हमारा,
रस में रसका के डूबा जा,
आजा मोरे अंगना,
आजा आजा रे सांवरिया,
आजा मोरे अंगना।।
आजा आजा रे सांवरिया,
आजा आजा रे कन्हैया,
आजा मोरे अंगना,
प्यारी बांसुरी बजा जा,
प्यारी बांसुरी बजा जा,
आजा मोरे अंगना,
आजा आजा रे सांवरिया,
आजा मोरे अंगना।।
सुंदर भजन में श्रीकृष्णजी के प्रति भक्त की तीव्र लालसा और प्रेम का उद्गार झलकता है, जो मन को वृंदावन की लीलाओं और उनके सान्निध्य की ओर खींच लेता है। यह भाव उस सत्य को प्रकट करता है कि श्रीकृष्णजी का प्रेम और उनकी बांसुरी की धुन ही भक्त के जीवन का सबसे बड़ा सुख है।
श्रीकृष्णजी को अपने अंगना में बुलाने की पुकार भक्त के हृदय की उस गहरी चाह को दर्शाती है, जो उनके दर्शन और सान्निध्य के बिना अधूरी है। यह उद्गार मन को उस अनुभूति से जोड़ता है, जैसे कोई प्रिय के आने की प्रतीक्षा में हर पल बेचैन रहता है। उनकी बांसुरी की मधुर धुन भक्त के मन को प्रेम और भक्ति के रस में डुबो देती है।
भक्त की यह कामना कि श्रीकृष्णजी आएँ तो उनके लिए सेज सजाई जाए और पलकें बिछाई जाएँ, उनके प्रति पूर्ण समर्पण और आतिथ्य की भावना को दर्शाती है। यह भाव उस सत्य को उजागर करता है कि भक्त अपने तन-मन को उनके चरणों में अर्पित कर देना चाहता है। जैसे कोई विद्यार्थी अपने गुरु के स्वागत में सर्वस्व लगा देता है, वैसे ही भक्त श्रीकृष्णजी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने को तत्पर है।
वृंदावन और यमुना का किनारा भक्त के मन में श्रीकृष्णजी की लीलाओं की सजीव छवि उकेरता है। यह उद्गार उस रसपूर्ण भक्ति को प्रकट करता है, जो भक्त को उनके प्रेम में पागलपन की हद तक डुबो देता है। जैसे कोई संत अपने जीवन को ईश्वर की लीलाओं में लीन कर देता है, वैसे ही भक्त का अंगना श्रीकृष्णजी के रस में डूबा हुआ है।
श्रीकृष्णजी को अपने अंगना में बुलाने की पुकार भक्त के हृदय की उस गहरी चाह को दर्शाती है, जो उनके दर्शन और सान्निध्य के बिना अधूरी है। यह उद्गार मन को उस अनुभूति से जोड़ता है, जैसे कोई प्रिय के आने की प्रतीक्षा में हर पल बेचैन रहता है। उनकी बांसुरी की मधुर धुन भक्त के मन को प्रेम और भक्ति के रस में डुबो देती है।
भक्त की यह कामना कि श्रीकृष्णजी आएँ तो उनके लिए सेज सजाई जाए और पलकें बिछाई जाएँ, उनके प्रति पूर्ण समर्पण और आतिथ्य की भावना को दर्शाती है। यह भाव उस सत्य को उजागर करता है कि भक्त अपने तन-मन को उनके चरणों में अर्पित कर देना चाहता है। जैसे कोई विद्यार्थी अपने गुरु के स्वागत में सर्वस्व लगा देता है, वैसे ही भक्त श्रीकृष्णजी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने को तत्पर है।
वृंदावन और यमुना का किनारा भक्त के मन में श्रीकृष्णजी की लीलाओं की सजीव छवि उकेरता है। यह उद्गार उस रसपूर्ण भक्ति को प्रकट करता है, जो भक्त को उनके प्रेम में पागलपन की हद तक डुबो देता है। जैसे कोई संत अपने जीवन को ईश्वर की लीलाओं में लीन कर देता है, वैसे ही भक्त का अंगना श्रीकृष्णजी के रस में डूबा हुआ है।
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Author - Saroj Jangir
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