रहीम और उनके लोकप्रिय दोहों का अर्थ हिंदी में जानिये
बिपति भए धन ना रहे, रहे जो लाख करोर ।
नभ तारे छिपि जात हैं, ज्यों रहीम भए भोर ॥
भजौं तो काको मैं भजौं, तजौं तो काको आन ।
भजन तजन ते बिलग हैं, तेहि रहीम तू जान ॥
भलो भयो घर ते छुट्यो, हँस्यो सीस परिखेत ।
काके काके नवत हम, अपन पेट के हेत ॥
यों रहीम गति बड़ेन की, ज्यों तुरंग व्यवहार ।
दाग दिवावत आपु तन, सही होत असवार ॥
यों रहीम तन हाट में, मनुआ गयो बिकाय ।
ज्यों जल में छाया परे, काया भीतर नॉंय ॥
यों रहीम सुख दुख सहत, बड़े लोग सह साँति ।
उवत चंद जेहि भाँति सो, अथवत ताही भाँति ॥
रन, बन, ब्याधि, विपत्ति में, रहिमन मरै न रोय ।
जो रच्छक जननी जठर, सो हरि गये कि सोय ॥
रहिमन अती न कीजिये, गहि रहिये निज कानि ।
सैजन अति फूले तऊ डार पात की हानि ॥
रहिमन अपने गोत को, सबै चहत उत्साह ।
मृ्ग उछरत आकाश को, भूमी खनत बराह ॥
रहिमन अपने पेट सौ, बहुत कह्यो समुझाय ।
जो तू अन खाये रहे, तासों को अनखाय ॥
रहिमन अब वे बिरछ कहँ, जिनकी छॉह गंभीर ।
बागन बिच बिच देखिअत, सेंहुड़, कुंज, करीर ॥
रहिमन असमय के परे, हित अनहित ह्वै जाय ।
बधिक बधै मृग बानसों, रुधिरे देत बताय ॥
रहिमन अँसुआ नैन ढरि, जिय दुख प्रगट करेइ ।
जाहि निकारो गेह ते, कस न भेद कहि देइ ॥
बिपति भए धन ना रहे, रहे जो लाख करोर।
नभ तारे छिपि जात हैं, ज्यों रहीम भए भोर॥रहीम कहते हैं कि विपत्ति आने पर करोड़ों की संपत्ति भी साथ नहीं देती, जैसे भोर होते ही आकाश के तारे छिप जाते हैं।
भजौं तो काको मैं भजौं, तजौं तो काको आन। भजन तजन ते बिलग हैं, तेहि रहीम तू जान॥
रहीम कहते हैं कि यदि मैं किसी का भजन करूं तो किसका करूं, और यदि किसी को त्यागूं तो किसे त्यागूं? भजन और त्याग अलग-अलग हैं, यह बात तू समझ।
भलो भयो घर ते छुट्यो, हँस्यो सीस परिखेत।
काके काके नवत हम, अपन पेट के हेत॥
रहीम कहते हैं कि अच्छा हुआ जो मैं घर से बाहर निकला और सिर पर पोटली बांधकर खेतों में हंसा। अब मैं किस-किस के सामने पेट के लिए नतमस्तक होता?
यों रहीम गति बड़ेन की, ज्यों तुरंग व्यवहार।
दाग दिवावत आपु तन, सही होत असवार॥
रहीम कहते हैं कि बड़े लोगों की स्थिति घोड़े के समान होती है, जो अपने शरीर पर दाग सहते हैं, लेकिन सवार को सुरक्षित रखते हैं।
यों रहीम तन हाट में, मनुआ गयो बिकाय।
ज्यों जल में छाया परे, काया भीतर नॉंय॥
रहीम कहते हैं कि जैसे जल में परछाई दिखती है, लेकिन वास्तविक शरीर उसमें नहीं होता, वैसे ही इस संसार में शरीर तो बाजार में है, लेकिन मन कहीं और बिका हुआ है।
पूरा नाम – अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना, (रहीम दास)
जन्म – 17 दिसम्बर 1556 ई.
मृत्यु – 1627 ई. (उम्र- 70)
उपलब्धि – कवि,
मुख्य रचनाए – रहीम रत्नावली, रहीम विलास, रहिमन विनोद, रहीम ‘कवितावली, रहिमन चंद्रिका, रहिमन शतक,
रहीम का पूरा नाम अब्दुल रहीम खानखाना था। रहीम मध्यकालीन कवि, सेनापति, प्रशासक, आश्रय दाता, दानवीर कूटनीतिज्ञ, बहु भाषा विद, कला प्रेमी सेनापति एवं विद्वान थे। रहीम के पिता का नाम बैरम खान और माता का नाम सुल्ताना बेगम था। ऐसा कहते हैं कि उनके जन्म के समय उनके पिता की आयु लगभग 60 वर्ष हो चुकी थी और रहीम के जन्म के बाद उनका नामकरण अकबर के द्वारा किया गया था । रहीम को वीरता, राजनीति, राज्य-संचालन, दानशीलता तथा काव्य जैसे अदभुत गुण अपने माता-पिता से विरासत में मिले थे।
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