कृष्णा तेरी बांसुरी जद बजदी

कृष्णा तेरी बांसुरी जद बजदी मन मेरा खो जांदा

कृष्णा तेरी बांसुरी जद बजदी मन मेरा खो जांदा,
आखा मीच के जद मैं याद करा उस वेले दर्शन हो जांदा,
कृष्णा तेरी बांसुरी जद बजदी मन मेरा खो जांदा,

मैं जोगन हो गई तेरी वे,
मैनु मंजिली उते ला लिया तू,
हूँ तड़पा तेरे प्रेम लई एह जाल कहो जेहा पा लिया तू,
जो झुक जांदा तेरे दर ते ओहदा हर गम आप हो जांदा,
कृष्णा तेरी बांसुरी जद बजदी मन मेरा खो जांदा,

जदो बंसी कृष्ण बजोन्डा है फिर नच्दे भगत प्यारे ने,
जिह्ना प्यार श्याम नाल पा लिया ओह रेह्न्दे विच नजारे ने,
इक पल भी जेहड़ा दर्श हॉवे उस पल मन भी मेरा रो जांदा,
कृष्णा तेरी बांसुरी जद बजदी मन मेरा खो जांदा,

की सिफ़त करा तेरी बंसी दी एह सब तो मीठी लगदी है,
जदो कोयल वांगु बोल्दी है भगता दे दिल नु ठग दी है,
जिहने दर्शन कर लये कान्हा दे ओ ओहदा ही हो जांदा,
कृष्णा तेरी बांसुरी जद बजदी मन मेरा खो जांदा,


सुंदर भजन में श्रीकृष्णजी की बंसी की अलौकिक मोहकता और भक्त के भावनात्मक समर्पण को प्रकट किया गया है। जब उनकी मधुर बांसुरी गूंजती है, तब न केवल मनुष्य, बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि उसकी धुन में खो जाती है—यह ध्वनि प्रेम, भक्ति और दिव्यता का महासंगीत बन जाती है।

श्रीकृष्णजी की बांसुरी केवल संगीत का माध्यम नहीं, बल्कि आत्मा की पुकार का उत्तर भी है। जब भक्त अपनी आँखें बंद कर उनके स्मरण में लीन हो जाता है, तब वह प्रभु के दर्शन की अनुभूति करता है। यह भाव बताता है कि ईश्वर की उपस्थिति बाहरी नहीं, बल्कि भीतर की भक्ति और प्रेम से ही महसूस की जा सकती है।

इस भजन में भक्ति की गहनता है—जहाँ भक्त स्वयं को श्रीकृष्णजी के चरणों में पूर्ण रूप से समर्पित कर देता है। वह जोगन बन जाता है, सांसारिक बंधनों को त्याग देता है, और केवल प्रभु के प्रेम को ही जीवन का अंतिम लक्ष्य मान लेता है। यह समर्पण उसे हर दुःख से मुक्त कर देता है और उसे आनंदमयी भक्ति में प्रवाहित करता है।

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