हरी मेरे जीवन प्राण आधार मीरा बाई भजन

हरी मेरे जीवन प्राण आधार मीरा बाई भजन

हरी मेरे जीवन प्राण आधार
और आसरो नहीं तुम बिन
तीनो लोक मझार
आप बिना मोहे कछु ना सुहावे
निरख्यो सब संसार
मीरा कहे मई दासी रावरी
दीजो मति बिसार


 
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सुंदर भजन में मीरा बाई की श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति और पूर्ण समर्पण का उद्गार झलकता है, जो भक्त के हृदय को प्रेम और विश्वास के रस में डुबो देता है। यह भाव उस सत्य को प्रकट करता है कि श्रीकृष्ण ही जीवन का एकमात्र आधार और आश्रय हैं, जिनके बिना संसार सूना है।

मीरा का यह कहना कि हरी उनके जीवन और प्राणों का आधार हैं, उनकी उस गहरी निष्ठा को दर्शाता है, जो तीनों लोकों में श्रीकृष्ण के सिवा किसी और को नहीं देखती। यह उद्गार मन को उस अनुभूति से जोड़ता है, जैसे कोई प्यासा केवल एकमात्र जलस्रोत की तलाश में भटकता है। मीरा के लिए श्रीकृष्ण ही वह स्रोत हैं, जिनके बिना जीवन का कोई रंग नहीं।

संसार को निरखने के बाद भी मीरा को कुछ न सुहाता, क्योंकि उनका मन केवल श्रीकृष्ण में रमा है। यह भाव उस सत्य को उजागर करता है कि सच्चा भक्त सांसारिक सुखों को तुच्छ मानकर केवल प्रभु के प्रेम में तृप्त होता है। जैसे कोई विद्यार्थी अपने गुरु की शिक्षाओं को ही सर्वस्व मानता है, वैसे ही मीरा का हृदय श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन है।

मीरा की यह पुकार कि वह उनकी दासी है और प्रभु उन्हें कभी न भूलें, उनके पूर्ण समर्पण और विनम्रता को दर्शाती है। यह उद्गार हर उस भक्त को प्रेरित करता है, जो अपने जीवन को ईश्वर के चरणों में अर्पित करना चाहता है। यह भजन सिखाता है कि सच्ची भक्ति में केवल प्रभु का आश्रय ही पर्याप्त है, और उनकी स्मृति में डूबा मन कभी निराश नहीं होता। मीरा की तरह, यह भजन हर हृदय को प्रेरित करता है कि श्रीकृष्ण को जीवन का आधार बनाकर हर पल उनके प्रेम में जीया जाए।
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