हरी मेरे जीवन प्राण आधार मीरा बाई भजन लिरिक्स Hari Mere Jivan Pran Aadhaar Lyrics

हरी मेरे जीवन प्राण आधार मीरा बाई भजन लिरिक्स Hari Mere Jivan Pran Aadhaar Lyrics

हरी मेरे जीवन प्राण आधार
और आसरो नहीं तुम बिन
तीनो लोक मझार
आप बिना मोहे कछु ना सुहावे
निरख्यो सब संसार
मीरा कहे मई दासी रावरी
दीजो मति बिसार

Haree Mere Jeevan Praan Aadhaar
Aur Aasaro Nahin Tum Bin
Teeno Lok Majhaar
Aap Bina Mohe Kachhu Na Suhaave
Nirakhyo Sab Sansaar
Meera Kahe Maee Daasee Raavaree
Deejo Mati Bisaar

 
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मीरा की भक्ति : विरह वेदना और अनंत प्रेम की प्रतिक हैं कृष्णा। कृष्णा की प्रेम दीवानी है मीरा की भक्ति जो दैहिक नहीं आध्यात्मिक भक्ति है। मीरा ने अपने भजनों में कृष्ण को अपना पति तक मान लिया है। यह भक्ति और समर्पण की पराकाष्ठा है। मीरा की यह भक्ति उनके बालयकाल से ही थी। मीरा की भक्ति कृष्ण की रंग में रंगी है। मीरा की भक्ति में नारी की पराधीनता की एक कसक है जो भक्ति के रंग में और गहरी हो गयी है। मीरा ने कृष्ण को अपना पति मान लिया और अपना मन और तन कृष्ण को समर्पित कर दिया। मीरा की एक एक भावनाएं भी कृष्ण के रंग में रंगी थी। मीरा पद और रचनाएँ राजस्थानी, ब्रज और गुजराती भाषाओं में मिलते हैं और मीरा के पद हृदय की गहरी पीड़ा, विरहानुभूति और प्रेम की तन्मयता से भरे हुए मीराबाई के पद अनमोल संपत्ति हैं। मीरा के पदों में अहम् को समाप्त करके स्वयं को ईश्वर के प्रति पूर्णतया मिलाप है। कृष्ण के प्रति उनका इतना समर्पण है की संसार की समस्त शक्तियां उसे विचलित नहीं कर सकती है। मीरा की कृष्ण भक्ति एक मिशाल है जो स्त्री प्रधान भक्ति भावना का उद्वेलित रूप है।

इस संसार से सभी वैभव छोड़कर मीरा ने श्री कृष्ण को ही अपना सब कुछ माना। राजसी ठाठ बाठ छोड़कर मीरा कृष्ण भक्ति और वैराग्य में अपना वक़्त बिताती हैं। भक्ति की ये अनूठी मिशाल है। मीरा के पदों में आध्यात्मिक अनुभूति है और इनमे दिए गए सन्देश अमूल्य हैं। मीरा के साहित्य में राजस्थानी भाषा का पुट है और इन्हे ज्यादातर ब्रिज भाषा में रचा गया है।
 
मीरा का जन्म : मीरा बाई सौलहवी सताब्दी की कृष्ण भक्त कवियत्री थी। मीरा बाई का जन्म रतन सिंह के घर हुआ था। बाल्य काल में ही मीरा की माता का देहांत हो गया था और उन्हें राव दूदा ने ही पाला था। इनकी माता का नाम विरह कुमारी था। इनका विवाह राजा भोजराज के साथ हुआ था, जो उदयपुर के कुंवर थे और महाराणा सांगा के पुत्र थे। मीरा के जन्म की जानकारी विस्तार से मीरा चरित से प्राप्त होती है। बाल्य काल से ही मीरा कृष्ण की भक्ति में रमी थी, अक्सर कृष्ण की मूर्ति के आगे नाचती थी और भजन भाव में अपना ध्यान लगाती थी। श्री कृष्ण को वे अपना पति मानती थी। पति के परलोक जाने के बाद मीरा अपना सारा समय कृष्ण भक्ति में लगाती थी। पति के देहांत हो जाने के बाद उन्हें सती करने का प्रयास किया किसी तरह मीरा बाई इस से बच पायी।

पुरुष प्रधान समाज में मीरा की भक्ति उनके परिवार वालों के रास नहीं आयी और कई बार उन्हें मारने की कोशिश भी की गयी लेकिन श्री कृष्ण जी ने उन्हें हर आफत से बाहर निकाला, श्री कृष्ण, श्री बांके बिहारी। आखिरकार मीरा बाई ने घर छोड़ दिया और वृन्दावन और द्वारका में कृष्ण भक्ति की। वे जहाँ जाती लोगों का आदर और सत्कार उन्हें प्राप्त होता। मीरा बाई के पदों में ज्यादातर भैरव राग की प्रमुखता है।

बसो मेरे नैनन में नंदलाल।
मोहनी मूरति, साँवरि, सुरति नैना बने विसाल।।
अधर सुधारस मुरली बाजति, उर बैजंती माल।
क्षुद्र घंटिका कटि- तट सोभित, नूपुर शब्द रसाल।
मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भक्त बछल गोपाल।।


मीरा बाई के गुरु का नाम संत रैदास था जिन्हे रविदास के नाम से भी जाना जाता है। मीरा बाई ने अपने पदों के इस बात की स्वीकारोक्ति दी है की उनके गुरु रैदास थे। इस बात के कोई प्रमाण मौजूद नहीं हैं की रैदास और मीरा की मुलाक़ात कहा हुयी और उन्होंने कहाँ उन्हें गुरु माना।

खोज फिरूं खोज वा घर को, कोई न करत बखानी।
सतगुरु संत मिले रैदासा, दीन्ही सुरत सहदानी।।
वन पर्वत तीरथ देवालय, ढूंढा चहूं दिशि दौर।
मीरा श्री रैदास शरण बिन, भगवान और न ठौर।।
मीरा म्हाने संत है, मैं सन्ता री दास।
चेतन सता सेन ये, दासत गुरु रैदास।।
मीरा सतगुरु देव की, कर बंदना आस।
जिन चेतन आतम कह्या, धन भगवान रैदास।।
गुरु रैदास मिले मोहि पूरे, धुर से कलम भिड़ी।
सतगुरु सैन दई जब आके, ज्याति से ज्योत मिलि।।
मेरे तो गिरीधर गोपाल दूसरा न कोय।
गुरु हमारे रैदास जी सरनन चित सोय।।

मीरा जी ने विभिन्न पदों व गीतों की रचना की| मीरा के पदों मे ऊँचे अध्यात्मिक अनुभव हैं| उनमे समाहित संदेश और अन्य संतो की शिक्षा मे समानता नजर आती हैं| उनके प्रप्त पद उनकी अध्यात्मिक उन्नति के अनुभवों का दर्पण हैं| मीरा ने अन्य संतो की तरह कई भाषाओं का प्रयोग किया है जैसे हिन्दी, गुजरती, ब्रज, अवधी, भोजपुरी, अरबी, फारसी, मारवाड़ी, संस्कृत, मैथली और पंजाबी। भावावेग, भावनाओं की मार्मिक अभिव्यक्ति, प्रेम की ओजस्वी प्रवाहधारा, प्रीतम वियोग की पीड़ा की मर्मभेदी प्रखता से अपने पदों को अलंकृत करने वाली प्रेम की साक्षात् मूर्ति मीरा के समान शायद ही कोई कवि हो। मीरा के भजन और पद आज भी लोगों की जुबान पर हैं जो ज्यादा क्लिष्ट ना होकर भाव प्रधान हैं। मीरा के पदों में वे स्वंय को श्री कृष्ण की उपासिका, दासी और भक्त मानती हैं। मीरा बाई की प्रमुख रचनाये हैं
  • नरसी का मायरा
  • गीत गोविंद टीका
  • राग गोविंद
  • राग सोरठ के पद

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