माई म्हारो सुपनामा परनेया रे दीनानाथ

माई म्हारो सुपनामा परनेया रे दीनानाथ भजन

माई म्हारो सुपनामा,
परनेया रे दीनानाथ
छप्पन कोटा जणा पधारया,
दुल्हो श्री बृजनाथ
सुपना मा तोरण बंध्या री,
सुपनामा गहया हाथ
सुपनामा म्हारे परण गया,
पाया अचल सुहाग
मीरा रो गिरिधर मिलिया री,
पूरब जनम रो भाग्य


सुंदर भजन में श्रीकृष्ण के प्रति मीरा की अनन्य भक्ति और उनके सान्निध्य की तीव्र लालसा का उद्गार झलकता है, जो भक्त के मन को प्रेम और समर्पण के रस में डुबो देता है। यह भाव उस सत्य को प्रकट करता है कि श्रीकृष्ण (दीनानाथ) का प्रेम ही जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य और अचल सुहाग है।

मीरा का स्वप्न, जिसमें दूल्हा श्री बृजनाथ छप्पन कोटि जनों के साथ पधारते हैं, उनके प्रति उसकी गहरी भक्ति और आत्मीयता को दर्शाता है। यह उद्गार मन को उस अनुभूति से जोड़ता है, जैसे कोई प्रिय के आगमन की प्रतीक्षा में अपने हृदय को तोरणों से सजाता है। सुपने में श्रीकृष्ण से परिणय का भाव मीरा के लिए उस अटूट बंधन का प्रतीक है, जो जन्म-जन्मांतर का है।

सुपने में गहने पहनना और अचल सुहाग पाना मीरा की उस आध्यात्मिक पूर्णता को दर्शाता है, जो श्रीकृष्ण की भक्ति से प्राप्त होती है। यह भाव उस सत्य को उजागर करता है कि सच्चा सौभाग्य सांसारिक नहीं, बल्कि ईश्वर के प्रेम में निहित है। जैसे कोई विद्यार्थी अपने गुरु की कृपा से जीवन का सत्य पाता है, वैसे ही मीरा का गिरिधर से मिलन उनके पूर्व जन्म के पुण्य का फल है।

यह उद्गार हर उस भक्त को प्रेरित करता है, जो अपने हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति को संजोना चाहता है। यह भजन सिखाता है कि सच्ची भक्ति स्वप्न और सत्य के बीच का पुल है, जो भक्त को अपने प्रभु के चरणों तक ले जाता है। मीरा की तरह, जो अपने सुपने में भी श्रीकृष्ण को ही देखती है, यह भजन मन को प्रेरित करता है कि हर पल उनके नाम और प्रेम में डूबा रहे, ताकि जीवन का हर क्षण उनके साथ परिणय का सौभाग्य बन जाए।
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