मेरा श्याम बड़ा अलबेला भजन
मेरा श्याम बड़ा अलबेला भजन
मेरा श्याम बड़ा अलबेला,
मेरी मटकी में मार गया ढेला,
मेरा श्याम बड़ा अलबेला,
मेरी मटकी में मार गया ढेला,
कभी गंगा के तीर,
कभी यमुना के तीर,
कभी गंगा के तीर,
कभी यमुना के तीर,
कभी सरयू में नहाये अकेला,
कभी सरयू में नहाये अकेला,
मेरी मटकी में मार गया ढेला,
मेरा श्याम बडा अलबेला,
मेरी मटकी में मार गया ढेला।
मेरी मटकी में मार गया ढेला,
मेरा श्याम बड़ा अलबेला,
मेरी मटकी में मार गया ढेला,
कभी गंगा के तीर,
कभी यमुना के तीर,
कभी गंगा के तीर,
कभी यमुना के तीर,
कभी सरयू में नहाये अकेला,
कभी सरयू में नहाये अकेला,
मेरी मटकी में मार गया ढेला,
मेरा श्याम बडा अलबेला,
मेरी मटकी में मार गया ढेला।
कभी गोपियों के संग,
कभी ग्वालों के संग,
कभी गोपियों के संग,
कभी ग्वालों के संग,
कभी गउवे चराये अकेला,
कभी गउवे चराये अकेला,
मेरी मटकी में मार गया ढेला,
मेरा श्याम बडा अलबेला,
मेरी मटकी में मार गया ढेला।
कभी भामा के संग,
कभी रुक्मणि के संग,
कभी भामा के संग,
कभी रुक्मणि के संग,
कभी राधा के संग अकेला,
कभी राधा के संग अकेला,
मेरी मटकी में मार गया ढेला,
मेरा श्याम बडा अलबेला,
मेरी मटकी में मार गया ढेला।
कभी सूरज के संग,
कभी चंदा के संग,
कभी सूरज के संग,
कभी चंदा के संग,
कभी तारो से खेले अकेला,
कभी तारो से खेले अकेला,
मेरी मटकी में मार गया ढेला,
मेरा श्याम बडा अलबेला,
मेरी मटकी में मार गया ढेला।
कभी संतों के संग,
कभी भक्तों के संग,
कभी संतों के संग,
कभी भक्तों के संग,
कभी मस्ती में बैठा अकेला,
कभी मस्ती में बैठा अकेला,
मेरी मटकी में मार गया ढेला,
मेरा श्याम बडा अलबेला,
मेरी मटकी में मार गया ढेला
मेरा श्याम बड़ा अलबेला,
मेरी मटकी में मार गया ढेला,
मेरा श्याम बड़ा अलबेला,
मेरी मटकी में मार गया ढेला,
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सुंदर भजन में श्रीकृष्णजी की अलबेली और चंचल लीलाओं का उद्गार है। उनकी शरारत भरी हरकतें, जैसे मटकी में ढेला मारना, मन को मोह लेती हैं। यह चंचलता प्रभु की उस सरलता को दर्शाती है, जो भक्त के हृदय को सहज ही बाँध लेती है। जैसे बच्चा अपनी मासूम शरारत से सबका मन जीत लेता है, वैसे ही श्रीकृष्णजी की लीलाएँ भक्तों को उनका दीवाना बना देती हैं।प्रभु का हर रूप और हर संग अनूठा है। वे कभी गंगा-यमुना के तीर पर स्नान करते हैं, तो कभी सरयू में अकेले विचरण करते हैं। यह उनकी स्वतंत्र और सर्वव्यापी प्रकृति को दिखाता है, जो हर स्थान को पावन बनाती है। गोपियों, ग्वालों, राधारानी या रुक्मिणी के साथ उनकी मधुर संगति प्रेम और भक्ति के रंगों को उजागर करती है। जैसे सूरज और चाँद रात-दिन को रोशन करते हैं, वैसे ही श्रीकृष्णजी हर पल भक्तों के जीवन में प्रकाश बिखेरते हैं।
संतों और भक्तों के बीच उनकी मस्ती भरी उपस्थिति प्रभु की सुलभता को दर्शाती है। वे कभी अकेले मस्ती में डूबे रहते हैं, तो कभी तारों के साथ खेलते हैं, जैसे सृष्टि का हर कण उनके साथ रमता हो। यह लीला हमें सिखाती है कि प्रभु का प्रेम हर रूप में, हर जगह उपलब्ध है। भक्ति का रास्ता सरल है—बस मन से उनकी शरारतों को अपनाना और उनके साथ रम जाना। यह भजन प्रभु की लीलाओं में डूबने और उनके प्रेम में खो जाने की प्रेरणा देता है।