मेरे मेरे छोटे से भगवान

मेरे छोटे से भगवान

मेरे छोटे से भगवान, उनके घुंघरन घुंघरन बाल,
जाओ जाओगे कहाँ मुख मोड़ के,

मैंने बड़े प्यार से आसन बिछाया,
बैठो बैठो हे भगवन उनकेउनके घुंघरन घुंघरन बाल,
जाओ जाओगे कहाँ मुख मोड़ के,

मैंने बड़े प्यार से शरबत बनाया,
पिलो पिलो हे भगवान उनके घुंघरन घुंघरन बाल,
जाओ जाओगे कहाँ मुख मोड़ के,

मैंने बड़े प्यार से भोजन बनाया,
खालो खालो हे भगवान उनके घुंघरन घुंघरन बाल,
जाओ जाओगे कहाँ मुख मोड़ के,

मैंने बड़े प्यार से बिस्तर बिछाया,
सोजा सोजा रे भगवान मुझे भगती का दो घ्यान,
उनके घुंघरन घुंघरन बाल,
जाओ जाओगे कहाँ मुख मोड़ के,


सुंदर भजन में भक्ति की निश्छलता और वात्सल्य का अनूठा संगम प्रदर्शित किया गया है। यह अनुभूति श्रीकृष्णजी को अपने बाल गोपाल के रूप में देखने की है, जहाँ भक्त का प्रेम, सेवा और समर्पण बाल-स्नेह की ऊँचाई तक पहुँच जाता है। भक्त अपने आराध्य के लिए सभी भावनाएँ पूर्णता से समर्पित करता है—वह अपने आराध्य को आसन पर बैठाता है, उनके लिए प्रेम से भोजन बनाता है, शरबत परोसता है और उन्हें सुलाने तक का प्रयास करता है। यह भक्ति केवल पूजा-अर्चना नहीं, बल्कि उस आत्मीयता का प्रतीक है, जहाँ ईश्वर अपने भक्त के लिए सजीव रूप में उपस्थित हो जाते हैं।

सजीवता का यह भाव दर्शाता है कि जब भक्ति निष्काम और पूर्ण समर्पित हो जाती है, तब भगवान केवल पूजा की मूर्ति नहीं रहते, बल्कि जीवन का अभिन्न अंग बन जाते हैं। यह अनुभूति स्वयं को ईश्वर के साथ गहन रूप से जोड़ने की है, जहाँ प्रेम, श्रद्धा और सेवा का अद्भुत समन्वय दिखाई देता है।

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