सांवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो जी
सांवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो जी
सांवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो जी॥थें छो म्हारा गुण रा सागर, औगण म्हारूं मति जाज्यो जी।
लोकन धीजै (म्हारो) मन न पतीजै, मुखडारा सबद सुणाज्यो जी॥
मैं तो दासी जनम जनम की, म्हारे आंगणा रमता आज्यो जी।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, बेड़ो पार लगाज्यो जी॥
साँवरो म्हारो प्रीत णिभाज्यो जी।।टेक।।
थें छो म्हारो गुण रो सागर, औगुण म्हाँ बिसराज्यो जी।
लोकणा सीझयाँ मन न पतीज्यां मुखड़ा सबद सुणाज्यो जी।
दासी थाँरी जणम जणम म्हारे आँगण आज्यो जी।
मीराँ रे प्रभु गिरधरनागर, बेड़ा पार लगाज्यो जी।।
(साँवरो=कृष्ण, णिभाज्यो=निभा दीजिए, थें छो=तुम हो, औगुण=अवगुण,दोष, पतीज्याँ=विश्वास करता है, सबद= शब्द, अनहद नाद, बेड़ा पार लगाज्यो=बेड़ा पार लगा दीजिए, उद्धार कर दीजिए)
सुंदर भजन में श्रीकृष्णजी के प्रति अटूट प्रीत और भक्ति का उद्गार हृदय को छू लेता है। जैसे नदी सागर से मिलने को व्याकुल रहती है, वैसे ही आत्मा अपने प्रभु के चरणों में समर्पित होने को तत्पर है। यह भाव धर्मज्ञान की उस सीख को प्रदर्शित करता है कि सच्ची भक्ति में ही जीवन का सत्य छिपा है।
श्रीकृष्णजी गुणों के सागर हैं, जो भक्त के दोषों को क्षमा कर उसे अपनाते हैं। यह विश्वास संत की वाणी की तरह निर्मल है, जो कहती है कि प्रभु का प्रेम दोषों को भुलाकर आत्मा को शुद्ध करता है। जैसे सूरज की किरणें अंधेरे को मिटाती हैं, वैसे ही प्रभु का नाम मन के संदेह को दूर करता है।
लोक की बातों से मन नहीं डिगता, क्योंकि प्रभु का शब्द ही सच्चा आधार है। यह उद्गार चिंतन की गहराई से उपजता है, जो मानता है कि प्रभु का नाम ही जीवन का सबसे मधुर संगीत है। मीराबाई की तरह भक्त का हृदय श्रीकृष्णजी के रंग में रंगा है, जो हर पल उनके दर्शन को तरसता है।
जन्म-जन्म की दासी बनकर भक्त अपने प्रभु के आंगन में रमने की कामना करता है। यह प्रीत इतनी गहन है कि वह संसार के हर बंधन को तोड़ देती है। धर्मगुरु की यह शिक्षा हृदय में बसती है कि प्रभु की शरण में ही सच्चा सुख मिलता है।
मीराबाई का प्रभु गिरधर नागर भवसागर से उद्धार करता है। जैसे नाविक तूफान में भी नाव को किनारे ले जाता है, वैसे ही श्रीकृष्णजी भक्त का बेड़ा पार लगाते हैं। यह भाव संत, चिंतक और धर्मगुरु के विचारों का संगम है, जो एक स्वर में कहता है कि प्रभु के प्रति प्रीत ही जीवन का परम ध्येय है।