सांवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो जी लिरिक्स

सांवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो जी लिरिक्स

सांवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो जी॥
थें छो म्हारा गुण रा सागर, औगण म्हारूं मति जाज्यो जी।
लोकन धीजै (म्हारो) मन न पतीजै, मुखडारा सबद सुणाज्यो जी॥
मैं तो दासी जनम जनम की, म्हारे आंगणा रमता आज्यो जी।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, बेड़ो पार लगाज्यो जी॥
साँवरो म्हारो प्रीत णिभाज्यो जी।।टेक।।
थें छो म्हारो गुण रो सागर, औगुण म्हाँ बिसराज्यो जी।
लोकणा सीझयाँ मन न पतीज्यां मुखड़ा सबद सुणाज्यो जी।
दासी थाँरी जणम जणम म्हारे आँगण आज्यो जी।
मीराँ रे प्रभु गिरधरनागर, बेड़ा पार लगाज्यो जी।।

(साँवरो=कृष्ण, णिभाज्यो=निभा दीजिए, थें छो=तुम हो, औगुण=अवगुण,दोष, पतीज्याँ=विश्वास करता है, सबद=शब्द,अनहद नाद, बेड़ा पार लगाज्यो=बेड़ा पार लगा दीजिए,उद्धार कर दीजिए)


Next Post Previous Post