या ब्रज में कछु देख्यो री टोना

या ब्रज में कछु देख्यो री टोना

या ब्रज में कछु देख्यो री टोना
या ब्रज में कछु देख्यो री टोना॥
लै मटकी सिर चली गुजरिया, आगे मिले बाबा नंदजी के छोना।
दधिको नाम बिसरि गयो प्यारी, लेलेहु री कोउ स्याम सलोना॥

बिंद्राबनकी कुंज गलिन में, आंख लगाय गयो मनमोहना।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, सुंदर स्याम सुधर रसलौना॥
 (टोना=जादू, छोना=पुत्र)


या ब्रज में कछु देख्यो री टोना (मीरा जी)
बृज की गलियों में श्रीकृष्ण का रमणीय रूप ऐसा जादू है, जो हर मन को बाँध लेता है। गोपियाँ दही की मटकी सिर पर रखे चलती हैं, पर नंदलाल के दर्शन होते ही सब भूल जाती हैं। उनका साँवला, मनमोहक रूप ऐसा कि मन उसी में खो जाए, जैसे दीपक की लौ में पतंगा समा जाता है।

वृंदावन की कुंज-गलियों में उनकी लीलाएँ हृदय को रिझाती हैं, जहाँ हर पल प्रेम और रस बरसता है। मीरा का मन गिरधर के चरणों में रम गया, जहाँ सच्चा सुख और शांति है। यह भक्ति का भाव है कि प्रभु का प्रेम ही जीवन का सबसे अनमोल रत्न है, जो आत्मा को परम आनंद में डुबो देता है।
 
ब्रज की गलियों में विचरते हुए यह मनमोहक दृश्य ही मानो कोई अनोखा जादू हो। एक ओर मटकी सिर पर लिए चली गुजरिया, और दूसरी ओर सामने खड़े नंदजी के लाड़ले, साक्षात श्याम। दूध की सुध बिसर गई, क्योंकि जो सामने था, वही मन को मोहित करने के लिए पर्याप्त था—अद्वितीय सौंदर्य, अद्वितीय आकर्षण।

वृंदावन की कुंज गलियों में जब वह विचरते हैं, तो ऐसा लगता है मानो प्रेम ही साकार होकर चल रहा हो। उनकी चंचल दृष्टि, उनकी मोहक मुस्कान, और उनकी अनुपम लीलाएं प्रत्येक को अपनी ओर खींच लेती हैं। यह अलौकिक प्रेम का वह बंधन है, जिसमें बंधकर मनुष्य अपने समस्त मोह और चिंता को भूल जाता है।

वह माधुर्य की मूर्ति हैं, जिनके दर्शन से ही आत्मा को पूर्णता का अनुभव होता है। जो भी उनके प्रेम में एक बार डूब जाता है, उसके लिए संसार की हर अन्य अनुभूति फीकी पड़ जाती है। यही ब्रज का अनोखा जादू है, जहाँ कृष्ण का सौंदर्य और प्रेम जीवन का सबसे मधुर अनुभव बन जाता है।
 
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