या तो रंग धत्तां लग्यो ए माय
या तो रंग धत्तां लग्यो ए माय
या तो रंग धत्तां लग्यो ए मायया तो रंग धत्तां लग्यो ए माय।।टेक।।
पिया पियाला अगर रस का चढ़ गई घूम घूमाय।
वो तो अमल म्हांरों कबहुं न उतरे, कोट करो न उपाय।
सांप पिटारो राणाजी भेज्यो, द्यो मेड़तणी गल डार।
हंस हंस मीरां कंठ लगायो, यो तो म्हाँरे नौसर हार।
विष का प्यालो राणो जी मेल्यो, द्यो मेड़तणी ने पाय।
कर चरणामृत पी गई रे, गुण गोविन्द रा गाय।
पिया पियाला नाम का रे, और न रंग सोहाय।
मीराँ कहे प्रभु गिरधरनागर, काचो रंग उड़ जाय।।
(धत्तां=खूब,अधिक, घूमाय=चक्कर देकर, अमल=नशा, कोट=कोटि,करोड़,असंख्य, द्यो=दिया, मेड़तणी=
मेड़ते की लड़की,मीरां, नौसर=नौ लड़ियों का, काचो=कच्चा)
मेड़ते की लड़की,मीरां, नौसर=नौ लड़ियों का, काचो=कच्चा)
भक्ति का रंग जब चढ़ जाता है, तो फिर संसार की कोई भी परिस्थिति उसे फीका नहीं कर सकती। यह वह दिव्य प्रेम है, जो एक बार आत्मा में समा जाए, तो फिर कभी कम नहीं होता—कोटि उपाय किए जाएं, फिर भी यह अमर रहता है।
आधि-व्याधि, कठिनाइयों और विरोध की आंधी भी इस प्रेम को डिगा नहीं सकती। विष के प्याले को सहज भाव से ग्रहण कर लेना, और सांप को हार की तरह गले में डाल देना—यह मात्र साहस नहीं, बल्कि भक्ति का वह उत्कर्ष है, जहाँ भय, मृत्यु और दुख का कोई स्थान नहीं रहता।
नाम-स्मरण का रस इतना प्रबल होता है कि अन्य सभी रंग फीके पड़ जाते हैं। जब यह प्रेम हृदय में गहराई से समा जाता है, तो फिर जीवन और मृत्यु, सुख और दुख, मान और अपमान सब तुच्छ हो जाते हैं। यही सच्ची भक्ति है—जो किसी भी बाधा को पार कर परमात्मा के चरणों में विश्रांति पाती है।
आधि-व्याधि, कठिनाइयों और विरोध की आंधी भी इस प्रेम को डिगा नहीं सकती। विष के प्याले को सहज भाव से ग्रहण कर लेना, और सांप को हार की तरह गले में डाल देना—यह मात्र साहस नहीं, बल्कि भक्ति का वह उत्कर्ष है, जहाँ भय, मृत्यु और दुख का कोई स्थान नहीं रहता।
नाम-स्मरण का रस इतना प्रबल होता है कि अन्य सभी रंग फीके पड़ जाते हैं। जब यह प्रेम हृदय में गहराई से समा जाता है, तो फिर जीवन और मृत्यु, सुख और दुख, मान और अपमान सब तुच्छ हो जाते हैं। यही सच्ची भक्ति है—जो किसी भी बाधा को पार कर परमात्मा के चरणों में विश्रांति पाती है।
श्रीकृष्ण के प्रेम का रंग इतना गाढ़ा है कि एक बार जो उसमें रंग गया, वह कभी नहीं छूटता। यह प्रेम का नशा ऐसा है, जो अनंत काल तक हृदय को मस्त रखता है, जैसे नदी सागर में मिलकर एक हो जाए। सांसारिक उपाय इस रंग को मिटा नहीं सकते।
जब राणाजी ने मीरा को सांप भेजा, वह उनके गले का हार बन गया; विष का प्याला आया, तो वह चरणामृत बनकर प्रभु के गुणों का गान करने लगा। यह भक्ति की शक्ति है, जो हर कठिनाई को प्रेम में बदल देती है। सच्चा रंग तो बस प्रभु के नाम का है, बाकी सारे रंग फीके और कच्चे हैं, जो पल में उड़ जाते हैं।
मीरा का जीवन यही सिखाता है कि गिरधर के प्रति अनन्य भक्ति ही वह मार्ग है, जो आत्मा को सांसारिक बंधनों से मुक्त कर परम शांति और आनंद की ओर ले जाता है।
जब राणाजी ने मीरा को सांप भेजा, वह उनके गले का हार बन गया; विष का प्याला आया, तो वह चरणामृत बनकर प्रभु के गुणों का गान करने लगा। यह भक्ति की शक्ति है, जो हर कठिनाई को प्रेम में बदल देती है। सच्चा रंग तो बस प्रभु के नाम का है, बाकी सारे रंग फीके और कच्चे हैं, जो पल में उड़ जाते हैं।
मीरा का जीवन यही सिखाता है कि गिरधर के प्रति अनन्य भक्ति ही वह मार्ग है, जो आत्मा को सांसारिक बंधनों से मुक्त कर परम शांति और आनंद की ओर ले जाता है।
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