हैडा मामूनें हरीवर पालारे
हैडा मामूनें हरीवर पालारे
हैडा मामूनें हरीवर पालारे मीरा भजन
हैडा मामूनें हरीवर पालारे। जाऊछूं जमनी तेमनीरे।
मुजे मारी कट्यारी। प्रेमनी प्रेमनीरे॥टेक॥
जल भरवासु गरवा गमाया। माथा घागरडी हमनारे॥१॥
बाजुबंद गोंडा बरखा बिराजे। हाथे बिटी छे हेमनीरे॥२॥
सांकडी शेरीमां वालोजी मी ज्याथी। खबर पुछुछुं खेमनीरे॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। भक्ति करुछुं नित नेमनीरे॥४॥
हैडा मामूनें हरीवर पालारे। जाऊछूं जमनी तेमनीरे।
मुजे मारी कट्यारी। प्रेमनी प्रेमनीरे॥टेक॥
जल भरवासु गरवा गमाया। माथा घागरडी हमनारे॥१॥
बाजुबंद गोंडा बरखा बिराजे। हाथे बिटी छे हेमनीरे॥२॥
सांकडी शेरीमां वालोजी मी ज्याथी। खबर पुछुछुं खेमनीरे॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। भक्ति करुछुं नित नेमनीरे॥४॥
पद का भावार्थ: मीराबाई अपनी सखी से कहती हैं कि वह अपने प्रिय श्रीकृष्ण के साथ मिलन के लिए तैयार हैं। वह कहती हैं कि वह अपनी धरती छोड़कर उनके साथ स्वर्ग में निवास करेंगी। यहां मीराबाई अपने प्रेम को कटारी (चाकू) के समान तीव्र और कटु मानती हैं। वह कहती हैं कि उनका प्रेम ही उनकी वास्तविकता है। मीराबाई अपने प्रिय श्रीकृष्ण के साथ जल भरने की कल्पना करती हैं। वह कहती हैं कि उनके साथ जल भरते समय उनका घड़ा (गरवा) और सिर (माथा) दोनों ही सजते हैं।
यहां मीराबाई अपने प्रिय श्रीकृष्ण के साथ बाजूबंद (कड़ा) पहनने और गहनों से सजने की कल्पना करती हैं। वह कहती हैं कि उनके हाथों में बिटी (चूड़ी) और हेम (सोना) की चमक है।
मीराबाई अपने प्रिय श्रीकृष्ण के साथ सांकड़ी (साड़ी) पहनने और उनके साथ चलने की कल्पना करती हैं। वह कहती हैं कि वह उनके साथ हर जगह जाएंगी और उनकी खबर लेंगी।
यहां मीराबाई अपने प्रिय श्रीकृष्ण से कहती हैं कि वह उनकी भक्ति करती रहेंगी और उनके साथ नित्य प्रेम में बंधी रहेंगी।
यहां मीराबाई अपने प्रिय श्रीकृष्ण के साथ बाजूबंद (कड़ा) पहनने और गहनों से सजने की कल्पना करती हैं। वह कहती हैं कि उनके हाथों में बिटी (चूड़ी) और हेम (सोना) की चमक है।
मीराबाई अपने प्रिय श्रीकृष्ण के साथ सांकड़ी (साड़ी) पहनने और उनके साथ चलने की कल्पना करती हैं। वह कहती हैं कि वह उनके साथ हर जगह जाएंगी और उनकी खबर लेंगी।
यहां मीराबाई अपने प्रिय श्रीकृष्ण से कहती हैं कि वह उनकी भक्ति करती रहेंगी और उनके साथ नित्य प्रेम में बंधी रहेंगी।
सुंदर भजन में मीराबाई का अनन्य प्रेम और भक्ति की गहनता प्रकट होती है। जब मन प्रियतम की भक्ति में संलग्न होता है, तब सांसारिक मोह और बंधन पीछे छूट जाते हैं। यह भाव केवल बाहरी समर्पण नहीं, बल्कि आत्मा की पूर्ण आस्था और श्रद्धा है, जो भक्त को ईश्वर की ओर आकर्षित करती है।
मीराबाई का प्रेम केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक भी है। यह भजन आत्मा की यात्रा को दर्शाता है—जहाँ प्रेम, समर्पण और भक्ति का मिलन होता है। जल भरने की क्रिया भी भक्ति का प्रतीक बन जाती है, और हर सांस में प्रियतम का स्मरण प्रवाहित होता है।
समर्पण के इस मार्ग पर, जब भक्त अपने प्रियतम को अपना सर्वस्व बना लेता है, तब संसार की चिंता और भ्रम स्वतः समाप्त हो जाते हैं। यह प्रेम की उस अवस्था को दर्शाता है, जहाँ ईश्वर के प्रति आस्था ही एकमात्र सच्चा सम्बल रह जाता है।
भजन में प्रेम और भक्ति का यह विलक्षण संगम, मीराबाई की गहरी निष्ठा और उनके भावों की मधुरता को प्रकट करता है। उनकी तपस्या और अनुराग उनके प्रभु के प्रति अटल विश्वास को दर्शाते हैं, जहाँ भक्ति ही जीवन का अंतिम सत्य बन जाती है। यही प्रेम की उच्चतम अवस्था है—जहाँ आत्मा पूर्ण रूप से ईश्वर में लीन हो जाती है।
मीराबाई का प्रेम केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक भी है। यह भजन आत्मा की यात्रा को दर्शाता है—जहाँ प्रेम, समर्पण और भक्ति का मिलन होता है। जल भरने की क्रिया भी भक्ति का प्रतीक बन जाती है, और हर सांस में प्रियतम का स्मरण प्रवाहित होता है।
समर्पण के इस मार्ग पर, जब भक्त अपने प्रियतम को अपना सर्वस्व बना लेता है, तब संसार की चिंता और भ्रम स्वतः समाप्त हो जाते हैं। यह प्रेम की उस अवस्था को दर्शाता है, जहाँ ईश्वर के प्रति आस्था ही एकमात्र सच्चा सम्बल रह जाता है।
भजन में प्रेम और भक्ति का यह विलक्षण संगम, मीराबाई की गहरी निष्ठा और उनके भावों की मधुरता को प्रकट करता है। उनकी तपस्या और अनुराग उनके प्रभु के प्रति अटल विश्वास को दर्शाते हैं, जहाँ भक्ति ही जीवन का अंतिम सत्य बन जाती है। यही प्रेम की उच्चतम अवस्था है—जहाँ आत्मा पूर्ण रूप से ईश्वर में लीन हो जाती है।