हारे मारे शाम काले मळजो लिरिक्स

हारे मारे शाम काले मळजो लिरिक्स

हारे मारे शाम काले मळजो। पेलां कह्या बचन पाळजो॥टेक॥
जळ जमुना जळ पाणी जातां। मार्ग बच्चे वेहेला वळजो॥१॥
बाळपननी वाहिली दासी। प्रीत करी परवर जो॥२॥
वाटे आळ न करिये वाहला। वचन कह्युं तें सुनजो॥३॥
घणोज स्नेह थयाथी गिरिधर। लोललज्जाथी बळजो॥४॥
मीरा कहे गिरिधर नागर। प्रीत करी ते पाळजो॥५॥
पद का भावार्थ:
मीराबाई अपने प्रियतम श्रीकृष्ण से आग्रह करती हैं कि वे उनसे मिलें और अपने पूर्व में किए गए वचनों का पालन करें। वह कहती हैं कि जब वह यमुना नदी से जल भरने जाती हैं, तो मार्ग में शीघ्रता से उनसे मिलें।
अपने बचपन की सखी और दासी होने के नाते, उन्होंने प्रेमपूर्वक उनका पालन-पोषण किया है। वह श्रीकृष्ण से विनती करती हैं कि मार्ग में कोई बाधा न डालें और उनके कहे वचनों को सुनें। गिरिधर के प्रति उनके गहरे स्नेह के कारण, वह लज्जा से भरकर उनसे मिलने की इच्छा व्यक्त करती हैं। अंत में, मीराबाई कहती हैं कि उन्होंने जो प्रेम किया है, उसे निभाएं और अपने वचनों का पालन करें।

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