हरि मेरे जीवन प्राण अधार लिरिक्स

हरि मेरे जीवन प्राण अधार लिरिक्स

हरि मेरे जीवन प्राण अधार।
और आसरो नांही तुम बिन, तीनू लोक मंझार।।
हरि मेरे जीवन प्राण अधार।।
आपबिना मोहि कछु न सुहावै निरख्यौ सब संसार।
हरि मेरे जीवन प्राण अधार।।
मीरा कहै मैं दासि रावरी, दीज्यो मती बिसार।।
हरि मेरे जीवन प्राण अधार।।
हरि म्रा जीवन प्राण अधार ।।टेक।।
और आसिरो णा म्हारा थें बिण, तीनूं लोक मंझार।
थें बिण म्हाणे जग ण सुहावाँ, निरख्याँ पद संसार।
मीराँ रे प्रभु दासी रावली, लीज्यो णेक णिहार।।

(हरि=कृष्ण, जीवण=जीवन, अधार=आधार,सहारा, आसिरो=ठिकाना, थें बिण=तुम्हारे बिना, निरख्याँ= निरख लिया,देख लिया, णेक णिहार=तनिक देख लो, रावली=आपकी,तुम्हारी)

मीराबाई कहती हैं कि हरि (भगवान श्री कृष्ण) उनके जीवन और प्राणों का आधार हैं, और उनके बिना तीनों लोकों में उन्हें कोई आश्रय नहीं मिलता। वह कहती हैं कि श्री कृष्ण के बिना उन्हें संसार की कोई भी वस्तु सुहाती नहीं है, क्योंकि उन्होंने सम्पूर्ण संसार को देख लिया है और उसमें उन्हें कुछ भी आकर्षक नहीं लगता। अंत में, मीराबाई स्वयं को भगवान की दासी मानती हैं और उनसे प्रार्थना करती हैं कि उन्हें कभी भी अपने स्मरण से वंचित न करें।

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