मीराबाई कहती हैं कि हरि (भगवान श्री कृष्ण) उनके जीवन और प्राणों का आधार हैं, और उनके बिना तीनों लोकों में उन्हें कोई आश्रय नहीं मिलता। वह कहती हैं कि श्री कृष्ण के बिना उन्हें संसार की कोई भी वस्तु सुहाती नहीं है, क्योंकि उन्होंने सम्पूर्ण संसार को देख लिया है और उसमें उन्हें कुछ भी आकर्षक नहीं लगता। अंत में, मीराबाई स्वयं को भगवान की दासी मानती हैं और उनसे प्रार्थना करती हैं कि उन्हें कभी भी अपने स्मरण से वंचित न करें।