हातकी बिडिया लेव मोरे बालक लिरिक्स

हातकी बिडिया लेव मोरे बालक लिरिक्स

हातकी बिडिया लेव मोरे बालक। मोरे बालम साजनवा॥टेक॥
कत्था चूना लवंग सुपारी बिडी बनाऊं गहिरी।
केशरका तो रंग खुला है मारो भर पिचकारी॥१॥
पक्के पानके बिडे बनाऊं लेव मोरे बालमजी।
हांस हांसकर बाता बोलो पडदा खोलोजी॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर बोलत है प्यारी।
अंतर बालक यारो दासी हो तेरी॥३॥
यह पद मीराबाई की भगवान श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति को दर्शाता है। वह अपने प्रियतम श्रीकृष्ण से आग्रह करती हैं कि वे उनके द्वारा बनाई गई पान की बीड़ियाँ स्वीकार करें। वह कहती हैं कि उन्होंने कत्था, चूना, लवंग, सुपारी मिलाकर गहरी बीड़ी बनाई है, और केसर का रंग खुला है, जिससे वह पिचकारी भरकर रंग खेलने की इच्छा व्यक्त करती हैं। वह अपने प्रियतम से मुस्कुराते हुए बातें करने और पर्दा खोलने का अनुरोध करती हैं। अंत में, मीराबाई कहती हैं कि उनके प्रभु गिरिधर नागर उन्हें 'प्यारी' कहकर बुलाते हैं, और वह उनकी दासी बनकर उनके साथ रहना चाहती हैं।

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