यह पद मीराबाई की गहरी भक्ति और भगवान श्री कृष्ण के प्रति उनके अनन्य प्रेम को व्यक्त करता है। मीराबाई अपने जीवन में श्री कृष्ण के बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकतीं। वह कहती हैं कि श्री कृष्ण के बिना उनका जीवन व्यर्थ है, जैसे काठ की लकड़ी में कीड़े लग जाते हैं, वैसे ही उनका मन बिना श्री कृष्ण के व्याकुल है। वह प्रेम की पीड़ा से व्याकुल हैं, और बिना श्री कृष्ण के उनका जीवन अधूरा है। मीराबाई अपने प्रभु श्री कृष्ण से मिलन की प्रार्थना करती हैं, ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले।