हरि बिन कूण गती मेरी लिरिक्स

हरि बिन कूण गती मेरी लिरिक्स

हरि बिन कूण गती मेरी।।टेक।।
तुम मेरे प्रतिपाल कहियै, मैं रावरी चेरी।
आदि अंत निज नाँव तेरो, हीया में फेरी।
बेरि बेरि पुकारि कहूँ, प्रभु आरति है तेरी।
थौ संसार विकार सागर, बीच में घेरी।
नाव फाटी प्रभु पाल बाँधो, बूड़त है बेरी।
बिरहणि पिवकी बाट जोवै, राखिल्यौ नेरी।
दासि मीरां राम रटत है, मैं सरण हूं तेरी।।
(कूण=कौन, गती=गति, प्रतिपाल=पालन करने वाले, रावरी चेरी=तुम्हारी दासी, नाँव= नाम, हीय=हृदय, बेरि-बेरि=बार बार, आरति= आर्ति प्रबल इच्छा, बिकार=दुःख, बेरी=बेड़ा, नांव, पिव की=प्रियतम की, नेरी=पास)

यह पद मीराबाई की गहरी भक्ति और भगवान श्री कृष्ण के प्रति उनके अनन्य प्रेम को व्यक्त करता है। मीराबाई अपने जीवन में श्री कृष्ण के बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकतीं। वह कहती हैं कि श्री कृष्ण के बिना उनका जीवन व्यर्थ है, जैसे काठ की लकड़ी में कीड़े लग जाते हैं, वैसे ही उनका मन बिना श्री कृष्ण के व्याकुल है। वह प्रेम की पीड़ा से व्याकुल हैं, और बिना श्री कृष्ण के उनका जीवन अधूरा है। मीराबाई अपने प्रभु श्री कृष्ण से मिलन की प्रार्थना करती हैं, ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले।

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