पद का भावार्थ:मीराबाई कहती हैं कि वह हार मानकर भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आई हैं, लेकिन उनकी साड़ी का एक बूंद भी भीगा नहीं है, अर्थात् उनकी भक्ति की परीक्षा अभी शेष है। वह तीन कठिनाइयों का उल्लेख करती हैं: पहली वर्षा, दूसरी तेज हवा, और तीसरी गहरी यमुना नदी।
ये तीनों मिलकर उनकी भक्ति की परीक्षा ले रही हैं। वह अपने यौवन, दही मथने की क्रिया, और भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दी गई गालियों का भी उल्लेख करती हैं, जो उनकी भक्ति के मार्ग में आने वाली चुनौतियों का प्रतीक हैं। अंत में, मीराबाई कहती हैं कि ब्रज में यशोदा रानी अपने लाल (कृष्ण) के साथ इन सभी कठिनाइयों में हार गईं, और वह स्वयं भी अपने प्रभु गिरिधर नागर के चरणों में समर्पित हो गई हैं।
पद की व्याख्या:इस पद में मीराबाई ने भक्ति मार्ग में आने वाली कठिनाइयों और चुनौतियों का वर्णन किया है। वर्षा, तेज हवा, और गहरी यमुना नदी जैसी प्राकृतिक बाधाएं उनकी भक्ति की परीक्षा लेती हैं। यौवन, दही मथना, और भगवान की लीलाओं में मिली गालियां उनके समर्पण की गहराई को दर्शाती हैं। अंततः, वह यशोदा रानी के उदाहरण से प्रेरणा लेकर अपने प्रभु के चरणों में समर्पित हो जाती हैं, जो उनकी अटूट भक्ति और समर्पण का प्रतीक है।