काना तोरी घोंगरीया पहरी मीरा पदावली
काना तोरी घोंगरीया पहरी मीरा बाई पदावली
काना तोरी घोंगरीया पहरी
काना तोरी घोंगरीया पहरी होरी खेले किसन गिरधारी॥१॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावत खेलत राधा प्यारी॥२॥
आली कोरे जमुना बीचमों राधा प्यारी॥३॥
मोर मुगुट पीतांबर शोभे कुंडलकी छबी न्यारी॥४॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर चरनकमल बलहारी॥५॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावत खेलत राधा प्यारी॥२॥
आली कोरे जमुना बीचमों राधा प्यारी॥३॥
मोर मुगुट पीतांबर शोभे कुंडलकी छबी न्यारी॥४॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर चरनकमल बलहारी॥५॥
काना तोरी घोंगरीया पहरी होरी खेले किसन गिरधारी॥१॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावत खेलत राधा प्यारी॥२॥
आली कोरे जमुना बीचमों राधा प्यारी॥३॥
मोर मुगुट पीतांबर शोभे कुंडलकी छबी न्यारी॥४॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर चरनकमल बलहारी॥५॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावत खेलत राधा प्यारी॥२॥
आली कोरे जमुना बीचमों राधा प्यारी॥३॥
मोर मुगुट पीतांबर शोभे कुंडलकी छबी न्यारी॥४॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर चरनकमल बलहारी॥५॥
प्रभु की सादगी और दिव्य प्रेम की लीला का भाव इस भजन में झलकता है। कन्हैया की साधारण घूंघरिया और होली का खेल सिखाता है कि सच्चा आनंद भौतिक वैभव में नहीं, बल्कि प्रेम और भक्ति में है। यमुना तट पर राधा के साथ उनकी लीला, गायें चराना, और रास रचाना मन को मोह लेता है, जो बताता है कि प्रभु का साथ हर क्षण को उत्सव बना देता है। राधा का यमुना में स्नान और कन्हैया का साथ प्रेम की उस गहराई को दर्शाता है, जो आत्मा को प्रभु से जोड़ती है। उनकी शोभा—मोर मुकुट, पीतांबर, कुंडल—बाहरी नहीं, बल्कि भक्त के हृदय में बसी उनकी छवि है। उदाहरण के लिए, जैसे होली के रंगों में सब भेद मिट जाते हैं, वैसे ही भक्ति में सांसारिक बंधन मिटकर आत्मा प्रभु में लीन हो जाती है। प्रभु के चरणों की शरण ही वह ठिकाना है, जहाँ मन को शांति और हृदय को अनंत प्रेम मिलता है। उनकी भक्ति में डूबकर जीवन का हर रंग प्रभु के प्रेम से सराबोर हो जाता है।
शाम बतावरे मुरलीवाला ॥ध्रु०॥
मोर मुगुट पीताबंर शोभे । भाल तिलक गले मोहनमाला ॥१॥
एक बन धुंडे सब बन धुंडे । काहां न पायो नंदलाला ॥२॥
जोगन होऊंगी बैरागन होऊंगी । गले बीच वाऊंगी मृगछाला ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । माग लीयो प्रीयां प्रेमको माला ॥४॥
आई ती ते भिस्ती जनी जगत देखके रोई ।
मातापिता भाईबंद सात नही कोई ।
मेरो मन रामनाम दुजा नही कोई ॥ध्रु०॥
साधु संग बैठे लोक लाज खोई । अब तो बात फैल गई ।
जानत है सब कोई ॥१॥
आवचन जल छीक छीक प्रेम बोल भई । अब तो मै फल भई ।
आमरूत फल भई ॥२॥
शंख चक्र गदा पद्म गला । बैजयंती माल सोई ।
मीरा कहे नीर लागो होनियोसी हो भई ॥३॥
मोर मुगुट पीताबंर शोभे । भाल तिलक गले मोहनमाला ॥१॥
एक बन धुंडे सब बन धुंडे । काहां न पायो नंदलाला ॥२॥
जोगन होऊंगी बैरागन होऊंगी । गले बीच वाऊंगी मृगछाला ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । माग लीयो प्रीयां प्रेमको माला ॥४॥
आई ती ते भिस्ती जनी जगत देखके रोई ।
मातापिता भाईबंद सात नही कोई ।
मेरो मन रामनाम दुजा नही कोई ॥ध्रु०॥
साधु संग बैठे लोक लाज खोई । अब तो बात फैल गई ।
जानत है सब कोई ॥१॥
आवचन जल छीक छीक प्रेम बोल भई । अब तो मै फल भई ।
आमरूत फल भई ॥२॥
शंख चक्र गदा पद्म गला । बैजयंती माल सोई ।
मीरा कहे नीर लागो होनियोसी हो भई ॥३॥
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